सिविल प्रक्रिया सहिंता में आदेश 39 बहूत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उक्त आदेश अस्थायी व्यादेश एवं वाद कालीन आदेश बाबत प्रक्रिया सम्बंधित हैं | जब पक्षकार न्यायलय में वाद प्रस्तुत करता हैं तब विरोधी पक्षकार के किसी अपकृत्य को तत्काल रोकने की आवयश्कता होती हैं | वाद कि लम्बी प्रक्रिया होने से तत्काल अनुतोष पक्षकार को वाद के साथ इस आदेश के अंतर्गत प्राथना पत्र प्रस्तुत करने पर न्यायलय तत्काल विरोधी पक्ष के अपकृत्य को रोकने का आदेश प्रदान कर सकते हैं। न्यायलय की सामान्य प्रक्रिया में यथास्थिति(status quo) बनाये रखने का आदेश प्रदान किया जाता हैं । यदि कोई पक्षकारवाद ग्रस्त ऐसी सम्पति को क्षति पहुचाने का कार्य करता हैं या ऐसे कार्य करने की धमकी देता हैं तो निश्चित ही यह कृत्य दुसरे पक्षकार के लिए अपूर्णीय क्षति का कृत्य करता हैं एसी अवस्था में न्यायलय का प्रथम कर्तव्य हैं की वाद के लंबित रहने के दौरान या उसके अंतिम निर्णय तक वादग्रस्त सम्पति की सुरक्षा करने के लिए वाद के रोज की स्थति को बनाये रखने का आदेश व्यादेश(njunction )विरोधी पक्ष के विरुद्ध जारी करे।
व्यादेश 4 प्रकार के होते हैं -
1 अस्थायी व्यादेश ( temporary injunction)
2 स्थायी व्यादेश (prohibitory injun)
3 निषेधात्मक व्यादेश(Prohibitory injunction)
4.आज्ञात्मक व्यादेश(Mandatory injuction)
सिविल प्रक्रिया संहिता में अस्थाई निषेधाज्ञा का ही उपबंध है।अन्य तीनो व्यादेश के बारे में विशिष्ठ अनुतोष अधिनियम 1963(Specific Relief Act,1963)में प्रावधान किया गया है।
आदेश 39 सी पी सी---
नियम 1.वे दशाएं जिनमे अस्थाई व्यादेश दिया जा सकेगा--जहा किसी वाद में शपथ पत्र द्वारा या अन्यथा यह साबित कर दिया जाता है कि---
(क) वाद में किसी विवादग्रस्त सम्पति के बारे में यह खतरा है कि वाद का कोई भी पक्षकार उसका नष्ट करेगा ,या नुकशान पहुचायेगा या अन्य अंतरित करेगा,या डिक्री के निष्पादन में उसका सदोष विक्रय कर दिया जावेगा अथवा
(ख) प्रतिवादी अपने लेनदारों को (कपट वंचित) करने की दृष्टि से अपनी सम्पति को हटाने या व्ययन करने की धमकी देता है या ऐसा करने का आशय रखता है,
(ग) प्रतिवादी वादी को वाद में विवादग्रस्त किसी सम्पति से बेकब्जा करने की या वादी को उस सम्पति के सम्बध में अन्यथा क्षति पहुचाने की धमकी देता है,--वहां न्यायालय ऐसे कार्य को अवरूढ करने के लिये आदेश द्वारा अस्थाई व्यादेश दे सकेगा,या सम्पति के दुर्व्यन किये जाने ,नुकशान किये जाने,अन्य संक्रांत किये जाने, ,हस्तांतरण किये जाने ,हटाये जाने या व्ययनित किये जाने जाने से अथवा वादी को वाद में विवादग्रस्त सम्पति से बेकब्जा करने या वादी को उस सम्पति के सम्बन्ध में अन्यथा क्षति पहुचाने से रोकने और निवारित करने के प्रयोजन से ऐसे अन्य आदेश जो न्यायालय ठीक समझे ,तब तक के लिये कर सकेगा जब तक उस वाद का निपटारा न हो जाय या जब तक अतिरिक्त आदेश न दे दिए जाये ।
नियम 2.भंग की पुनरावर्ती या जारी रखना को रोकने के लिए व्यादेश--
नियम 2(2). न्यायालय ऐसा व्यादेश, ऐसे व्यादेश की अवधि के बारे में ,लेखा करने के बारे में प्रतिभूति देने के बारे में ऐसे निबन्धनों पर,या अन्यथा, न्यायालय जो ठीक समझे, आदेश द्वारा दे सकेगा।
व्यादेश के मामले में दोनों ही नियम महत्वपूर्ण है।व्यादेश प्राप्त करने के लिए प्राथी को निम्न तीन बिंदुओं का होना नितांत आवश्यक है -
1.प्रथम दृष्टया मामला उसके पक्ष में होना चाहिये।
2. सुविधा का संतुलन होना।
3.अपूर्णीय क्षति का होना। ( इसकी पूरी जानकारी यह दी गयी हैं | )
उपरोक्त तीनो बिंदु व्यादेश चाहने वाले पक्षकार के पक्ष में होना आवश्यक है।इन मेसे किसी एक का भी आभाव होने पर न्यायालय व्यादेश नहीं देगा।
दीवानी मामलो में अस्थाई व्यादेश अति महत्वपूर्ण है।इस आदेश के दोनों नियमो का विस्तृत विवेचन आगे करेगे।अन्य नियम भी इसी प्रक्रिया संबधी होने से विवेचन किया जायेगा।
लगातार आप मेरे इस ब्लॉग से जुड़े रहे। अगर आपको इस पोस्ट या अन्य कोई विधि की जानकारी चाहते हैं तो कमेंट करे |
व्यादेश 4 प्रकार के होते हैं -
1 अस्थायी व्यादेश ( temporary injunction)
2 स्थायी व्यादेश (prohibitory injun)
3 निषेधात्मक व्यादेश(Prohibitory injunction)
4.आज्ञात्मक व्यादेश(Mandatory injuction)
सिविल प्रक्रिया संहिता में अस्थाई निषेधाज्ञा का ही उपबंध है।अन्य तीनो व्यादेश के बारे में विशिष्ठ अनुतोष अधिनियम 1963(Specific Relief Act,1963)में प्रावधान किया गया है।
आदेश 39 सी पी सी---
नियम 1.वे दशाएं जिनमे अस्थाई व्यादेश दिया जा सकेगा--जहा किसी वाद में शपथ पत्र द्वारा या अन्यथा यह साबित कर दिया जाता है कि---
(क) वाद में किसी विवादग्रस्त सम्पति के बारे में यह खतरा है कि वाद का कोई भी पक्षकार उसका नष्ट करेगा ,या नुकशान पहुचायेगा या अन्य अंतरित करेगा,या डिक्री के निष्पादन में उसका सदोष विक्रय कर दिया जावेगा अथवा
(ख) प्रतिवादी अपने लेनदारों को (कपट वंचित) करने की दृष्टि से अपनी सम्पति को हटाने या व्ययन करने की धमकी देता है या ऐसा करने का आशय रखता है,
(ग) प्रतिवादी वादी को वाद में विवादग्रस्त किसी सम्पति से बेकब्जा करने की या वादी को उस सम्पति के सम्बध में अन्यथा क्षति पहुचाने की धमकी देता है,--वहां न्यायालय ऐसे कार्य को अवरूढ करने के लिये आदेश द्वारा अस्थाई व्यादेश दे सकेगा,या सम्पति के दुर्व्यन किये जाने ,नुकशान किये जाने,अन्य संक्रांत किये जाने, ,हस्तांतरण किये जाने ,हटाये जाने या व्ययनित किये जाने जाने से अथवा वादी को वाद में विवादग्रस्त सम्पति से बेकब्जा करने या वादी को उस सम्पति के सम्बन्ध में अन्यथा क्षति पहुचाने से रोकने और निवारित करने के प्रयोजन से ऐसे अन्य आदेश जो न्यायालय ठीक समझे ,तब तक के लिये कर सकेगा जब तक उस वाद का निपटारा न हो जाय या जब तक अतिरिक्त आदेश न दे दिए जाये ।
नियम 2.भंग की पुनरावर्ती या जारी रखना को रोकने के लिए व्यादेश--
नियम 2(2). न्यायालय ऐसा व्यादेश, ऐसे व्यादेश की अवधि के बारे में ,लेखा करने के बारे में प्रतिभूति देने के बारे में ऐसे निबन्धनों पर,या अन्यथा, न्यायालय जो ठीक समझे, आदेश द्वारा दे सकेगा।
व्यादेश के मामले में दोनों ही नियम महत्वपूर्ण है।व्यादेश प्राप्त करने के लिए प्राथी को निम्न तीन बिंदुओं का होना नितांत आवश्यक है -
1.प्रथम दृष्टया मामला उसके पक्ष में होना चाहिये।
2. सुविधा का संतुलन होना।
3.अपूर्णीय क्षति का होना। ( इसकी पूरी जानकारी यह दी गयी हैं | )
उपरोक्त तीनो बिंदु व्यादेश चाहने वाले पक्षकार के पक्ष में होना आवश्यक है।इन मेसे किसी एक का भी आभाव होने पर न्यायालय व्यादेश नहीं देगा।
दीवानी मामलो में अस्थाई व्यादेश अति महत्वपूर्ण है।इस आदेश के दोनों नियमो का विस्तृत विवेचन आगे करेगे।अन्य नियम भी इसी प्रक्रिया संबधी होने से विवेचन किया जायेगा।
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November 5, 2023 at 8:38 AM
Gata sankhya 472 do khaton Khata sankhya 412 v 1 mein hai. Vadi Ne sabse pahle 2008 Mein Khata sankhya 412 ki Bhumi kray Kar Li Jo Taraf Purab Mein Hai tatha 2017-18 Mein prativadi Ne Khata sankhya Ek ki Bhumi kray ki. prativadi ke alava mein Taraf purv Mein Vadi ka Khet likha hai jo Satya hai. ISI Prakar Jab prativadi Ne Vadi ke purv Mein Bhumi ka bainama karaya usmein Paschim me Kshetra Ram Kishor likha hai is Prakar prativadi ke donon benamaon mein likhi chauhaddi ke anusar prativadi Ne Vadi ki Bhumi Ki sthiti sunishchit Kar Di Hai is Prakar Vadi prativadi dwara Ankit seemaon ke Aadhar per Aadesh 39 Niyam Ek Vadhu ke tahat asthai nishedh aagya Chahta Hai kanuni Salah den