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Order 22 Rule 4 CPC Procedure in the case of death of one of several defendants of sole defendant.

Order 22 Rule 4 CPC Procedure in the case of death of one of several defendants of sole defendant.  आदेश 22 नियम 4 सीपीसी- कई प्रतिवादियो मे...

           Order 14 CPC---- Settlement of issues--

आदेश 14 सी पी सी-विवाद्यक(वाद-पदों)का निश्चय किया जाना।

                  पक्षकारो न्यायलय में अभिकथन प्रस्तुत करने के पश्चात यानि वादी अपने वाद में जो कोई कथन       करता हैं तथा प्रतिवादी वादी के कथनों को इंकार करता हैं और यही वाद पद की उत्पती होती हैं। इस प्रकार         वाद-पद न्यायिक कार्यवाही व प्रकरण  को आगे बढाने वाले वो बिंदु होते हैं जो न्यायिक प्रक्रिया को पूरी करते     हैं । न्यायालय  द्वारा कायम किये गए वाद पदों को साबित करने का भार उन पक्षकारो पर होता हैं ।
       
                 वाद पद विधि तथा तथ्य संबंधी हो सकते हैं जो पक्षकारो के अभिवचन पर निर्भर करते हैं ।
  वाद पद तीन प्रकार के होते हैं
1 तथ्य संबंधी विवाद्यक
2 विधि संबंधी विवाद्यक
3 विधि तथा तथ्य का मिश्रित विवाद्यक

 
     चूँकि न्यायिक प्रक्रिया को संचालित करने एवं पक्षकारो के मध्य वास्तविक विवाद बिंदुओं का निर्धारण होने के पश्चात ही किसी भी प्रकरण की कार्यवाही आगे बढ़ती हैं जिससे यह महत्वपूर्ण होने से विधि के प्रावधानों का उल्लेख किया जाना आवश्यक हैं ।
       

          आदेश 14

 नियम-1. विवाद्यको की विरचना -
(१) विवाद्यक तब पैदा होते हैं जब की तथ्य या विधि की कोई तात्विक प्रतिपादना एक पक्षकार द्वारा प्रतिज्ञात और दूसरे पक्षकार द्वारा प्रत्याख्यात की जाती हैं ।
(२) तात्विक प्रतिपादनाएं विधि या तथ्य की वे प्रतिपादनाएँ हैं जिन्हें वाद लाने का अपना अधिकार दर्शित करने के लिए वादी को अभिकथित करना होगा या अपनी प्रतिरक्षा गठित करने के लिए प्रतिवादी को अभिकथित करना होगा ।
(३) एक पक्षकार द्वारा प्रतिज्ञात और दूसरे पक्षकार द्वारा प्रत्याख्यात हर एक एक तात्विक प्रतिपादना एक सुभिन्न विवसध्याक का विषय होगी।
(४) विवाद्यक दो किस्म के होते हैं :-
{क} तथ्य विवाद्यक ,
{ख} विधि विवाद्यक ।
(5) न्यायालय वाद की प्रथम सुनवाई में वादपत्र को और कोई लिखित कथन हो तो उसे पढ़ने के पश्चात और आदेश 10 के नियम 2 के अधीन परीक्षा करने के पश्चात तथा पक्षकारो या उनके अधिवक्ताओं की सुनवाई करने के पश्चात यह अभिनिश्चित करेगा की तथ्य की या विधि की किन तात्विक प्रत्तिपादनाओ के बारे में पक्षकारो में मतभेद हैं और तब वह उन विवाद्यको की विरचना और लेखन करने के लिए अग्रसर होगा जिनके बारे में यह प्रतीत होता हैं कि मामले का ठीक विनिश्चय उन पर निर्भर करता हैं ।
(६) इस नियम की कोई भी बात यह अपेक्षा नही करती हैं कि वह उस दशा में विवाद्यक विरचित और अभिलिखित करे जब प्रतिवादी वाद की पहली सुनवाई में कोई प्रतिरक्षा नही करता ।
          यहाँ यह स्पष्ठ करना आवश्यक हैं कि यदि प्रतिवादी कोई प्रतिरक्षा नही करता हैं यानी प्रतिवादी जवाब दावा या अन्य प्रकार से वादी के कथनों को इंकार नही करता हैं तो ऐसी अवस्था में विवाद्यको की राचनो को आवश्यकता नही हैं । इस आदेश का नियम दो अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं जो निम्न प्रकार हैं  जिसकी पूर्ण विवेचन किया जा रहा हैं ।

नियम 2 - न्यायलय द्वारा सभी विवाद्यको पर निर्णय सुनाया जाना-

(१)  इस बात के होते हुए भी की वाद का निपटारा प्रारम्भिक विवाद्यक पर किया जा सकेगा , न्यायालय उप            नियम दो के उपबंधों के अधीन रहते हुए सभी विवाद्यको पर निर्णय सुनाएगा ।
(२)  जहाँ  विधि  विवाद्यक और तथ्य विवाद्यक दोनों एक ही वाद में  पैदा हुये हैं और न्यायलय की यह राय हैं        कि  मामले या उसके किसी भाग का निपटारा केवल विधि विवाद्यक के आधार पर किया जा सकता हैं              वहां  यदि वह विवाद्यक -
(क)  न्यायलय की अधिकारीता  अथवा
(ख)  तत्समय प्रवृत किसी विधि द्वारा वाद के वर्जन ,
        से सम्बंधित हैं तो वह पहले इस विवाद्यक का विचरण करेगा और उस प्रयोजन के लिए यदि यह ठीक               समझे तो, वह अन्य विवाद्यको का निपटारा तब तक के लिए स्थगित कर सकेगा जब तक की उस                   विवाद्यक का अवधारण न कर दिया गया हो और उस वाद की कार्यवाही उस विवाद्यक के अनुसार कर             सकेगा।

                           आदेश 14 के यह दोनों नियम प्रक्रम के विचरण को आगे साक्ष्य लेकर चलाने या ऐसी स्टेज          पर वाद के निर्णय से सम्बंधित हैं जिससे सिविल वाद के विचरण के दौरान आदेश 14 नियम 2                          अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं जिसका विवेचन आगे की पोस्ट में क़ानूनी नजीरो सहित  विवेचन करेंगे  व अन्य            इस आदेश से उपबंधित नियमो का संक्षिप्त नियम सहिंता में इस प्रकार हैं।

नियम 3 - वह सामग्री जिस विवाद्यको की रचना की जा सकेगी

नियम 4- न्यायालय  विवाद्यको की विरचना करने के पहले साक्ष्यों की या दस्तावेजो की परीक्षा कर सकेगा।

नियम 5 - विवाद्यको का संशोधन और इन्हें काट देने की क्षति ।

नियम 6 - तथ्य के या विधि के प्रश्न क़रार द्वारा विवाद्यको के रूप में
 कथित किया जा सकेंगे ।

नियम 7 - यदि न्यायलय को यह समाधान हो जाता हैं कि करार का निष्पादन सद्भाव पूर्वक हुआ था तो वह निर्णय सुना सकेगा ।

                   वादों के विचारण में इस आदेश का नियम 2 व 5 बहुत उपयोगी हैं तथा विचारण के दौरान अक्सर       उक्त नियमानुसार प्रकरण के निपटारे हेतु पक्षकार वह न्यायलय दोनों को ही इस आदेश में वर्णित नियमो       की पालना करनी होती हैं ।
    नियम 2 व 5  प्रक्रिया के दौरान उपयोगी नियम होने से विस्तृत विवेचन क़ानूनी नजीरो सहित अगली पोस्ट     में किया जायेगा।

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