Powered by Blogger.

Featured Post

Order 22 Rule 4 CPC Procedure in the case of death of one of several defendants of sole defendant.

Order 22 Rule 4 CPC Procedure in the case of death of one of several defendants of sole defendant.  आदेश 22 नियम 4 सीपीसी- कई प्रतिवादियो मे...

          Section 10 CPC--Stay of suit. धारा 10 सी. पी. सी.-- वाद का स्थगन।


 सहिंता में यह धारा महत्वपूर्ण है।वाद कों रोकना विचाराधीन
 न्याय (RES SUBJUDICE) के सिद्धान्त पर आधारित है।
रेस सब जुडिस लेटिन टर्म से लिया गया है। वाद की बाहुलता
को रोकना अति आवश्यक है। तथा इसी के कारण सहिंता में
धारा 10 को उपबंधित  किया गया है जिसका उदेश्य क़ानूनी
बाध्यता से वादों की बहुलता (Multiplicity of suits)को रोकना है।

धारा10 सी पी सी--वाद का रोक दियाजाना--
किसी पक्षकारो के मध्य उसी विषय वस्तु ,अधिकार का वाद
उसी अदालत या भारत में किसी न्यायालय जिसे अदालत वाद
सुनने की अधिकारिता रखती हो चल रहा हो तो उसी विषय वस्तु
या अधिकार बाबत पुनः किया गया वाद  को न्यायालय रोक
स्थगन कर सकेगा।
 विदेशी न्यायालय में किसी वाद का लंबित होना उसी वाद
हेतुक पर आधारित किसी वाद का विचारण करने से भारत
में विचारण से वंचित नहीं करता है।
(धारा 10 का सारांश दिया गया हैं।

     यहाँ भी देखिये -Jurisdiction of the court and suits of civil nature

इस धारा का उदेश्य सामान क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय
को एक ही समय में एक ही वाद कारण व उसी विषय वस्तु
और उसी अनुतोष को प्राप्त करने के लिए एक से अधिक
वादों को ग्रहण करने या विचारण तथा निर्णीत करने से रोकना है।

     यह धारा कब लागु होगी--
1.दोनों वादों में वादग्रस्त विषय वस्तु एक ही होना आवश्यक है।
2.एक ही पक्षकारो या उनके प्रतिनिधियों के मध्य वाद होना चाहिये।
3. वाद एक ही हक़ के लिए किये गए हो।
4.न्यायालय जिसमे पूर्व वाद विचाराधीन है,बाद में प्रस्तुत
वाद (Subsequent suit) में चाहा गया अनुतोष को प्रदान करने का
वह न्यायालय क्षेत्राधिकार रखता हो।
5.पूर्ववर्ती वाद का उसी न्यायालय में जिसमे बाद का वाद प्रस्तुत हुआ
है या अन्य न्यायालय में, भारत के बाहर वाले सीमाए जो केंद्रीय सरकार
 द्वारा स्थापित है या उच्चतम न्यायालय के समक्ष लम्बित हो।
  इस धारा के प्रावधान आज्ञापक है।यह धारा पश्चात्वर्ती
वाद के प्रतुत करने का वर्जन न कर वाद का विचारण जिसे
स्थगित किया है का वर्जन करती है।

अब हम इसके विवेचन के लिए विभिन्न न्याय  निर्णय सहित
व्याख्या करना उचित समझते है--
1.प्रथम वाद  उप किरायेदारी एवम युक्ति युक्त आवश्यकता का
प्रशन अन्तर्ग्रस्त एवम पश्चात्वर्ती वाद केवल सदभावी व युक्तियुक्त
बाबत है---दोनों ही वाद में एक ही प्रशन अन्तर्ग्रस्त है व पश्चात्वर्ती वाद
में कार्यवाही स्थगित की।
1999(2)DNJ (राज.)744

2.दोनों वाद में विवादित बिंदु समान नहीं होने से आवेदन ख़ारिज किया गया।
1999(1)DNJ(Raj.)262
3.पश्चात्वर्ती वाद में वही विवाद्यक अन्तर्विष्ट है जो जो वादी के वर्तमान वाद में है।
तथा अनुतोष भी एक ही है।पश्चात्वर्ती वाद की कार्यवाही स्थगित की गयी।
2009(1) DNJ(Raj.)224

4.वाद के विचारण पर रोक के बावजूद अन्तर्वती आवेदन पर विचार किया जा सकता है।
2008(1)DNJ (Raj.) 128

5.पूर्ववती व पश्चात्वर्ती वाद में विवाद्यक समान होने पर पश्चात्वर्ती स्थगित कर दिया जायेगा।
AIR 1993 Mad.90

6.आपराधिक मामला उसी विषय वस्तु पर होना तथा यह अभिवाक की सिविल
 वाद स्थगन नहीं होने से उसकी प्रतिरक्षा जबाब दिए जाने से प्रकट हो जायेगी।
इस अभिवाक को नहीं माना गया।तथा सिविल वाद को स्थगित नहीं किया जा सकता है।
Civil Court C 433

7.धारा 10 सिविल वादों पर ही लागू होती है।अन्य कार्यवाहियों विचाराधीन होने मात्र
 से या पश्चात्वर्ती कार्यवाही स्थगित नहीं होगी।
AIR 1995 Guj.220

8.इस धारा या धारा 151 के अंतर्गत पूर्व वर्ती वाद(earlier suit)को स्थगित नहीं
किया जा सकता है।
AIR 1999 Pat. 103

धारा 10 में विशिष्ट उपबंध उपलब्ध है तो न्यायालय धारा 151 सी पी सी के
अंतर्गत अन्तर्निहित शक्तियो का उपयोग करने का अधिकार नहीं है।
AIR 1991 All.216

     उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि यह धारा वादों की बाहुलता रोकने के लिए आज्ञात्मक
उपबंध करती है।वाद पेश करने के पूर्व इस धारा को दृष्टिगत रखना आवश्यक है।

        आपको यह ब्लॉग कैसा लगा ? आप हम्हे कमेन्ट कर बता सकते है |
तथा आप हम्हे  subscribe कर सरल हिंदी में आवश्यक अधिनियमो व
धाराओं का न्यायनिर्णय सहित नयी पोस्ट्स के बारे में भी  अध्यन कर
सकते है।आपके लिए यह उपयोगी व नये अधिवक्ताओं को सहायता प्रदान करेगा |
    आप हमारे ब्लॉग से जुड़े व फॉलो करे।
    नोट :- आपकी सुविधा के लिए इस वेबसाइट का APP-APP-CIVIL LAW- GOOGLE PLAY STORE GOOGLE PLAY STORE में अपलोड किया गया हैं जिसकी लिंक निचे दी गयी हैं | आप इसे अपने फ़ोन में डाउनलोड करके ब्लॉग से जुड़े रहे |APP-CIVIL LAW- GOOGLE PLAY STORE



Your Name :

Your Email: (required)

Your Message: (required)

2 comments

  1. Yash Parihar  

    Good sir

  2. Tarachand Bhati  

    Thanks

Post a Comment

Archives

Image Crunch