आज के युग में हर व्यक्ति को सम्पति का लेन देन, शादी विवाह, व्यापार व्यवसाय , निर्माण के कार्य करते वक्त कभी कभी क़ानूनी कठिनाइया पैदा होती है , उनके निवारण हेतू न्यायलय विशिष्ट प्रक्रिया के माध्यम से पीड़ित व्यक्ति को उपचार प्रदान करते है | इसी प्रक्रिया को सिविल प्रक्रिया संहिता में शामिल किया गया है | इसमें 158 धाराए एवं 51 आदेश सम्मलित किये गये है | प्रक्रिया विधि में मात्र अधिकारों का विनिश्चय करना ही काफी नहीं हे बल्कि इन अधिकारों का प्रवर्तन सुनिश्चित किया जाना भी आवश्यक है | सिविल प्रक्रिया संहिता इसी उद्देश्य से पारित की गई है | इस विधि के धारा 1 में प्रारम्भिक - संहिता का इतिहास, नाम विस्तार और प्रारंभ वर्णित किया गया है | जो मूल विधि सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 में लागु की गई थी तथा समय समय पर संशोधन किये है | समय की मांग के अनुसार भारतीय संसद ने संशोधन अधिनियम 1999 एवं 2002 लागु किये गये है | इस प्रकार सिविल प्रक्रिया सहिंता 1908 उक्त संशोधन सहित लागु होती है | इस अधिनियम को 1 जनवरी 1909 को लागु किया गया है | इसका विस्तार जम्मू कश्मीर राज्य एवं नागालैंड राज्य और जनजाति क्षेत्रों के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है | संशोधन 1/7/2002 से लागु किये गए है |
January 7, 2017 at 6:39 AM
nice
January 7, 2017 at 9:11 AM
Good