ORDER 39 RULE 1 TO RULE 10 CPC --Temporary injunction आदेश 39 नियम 1 से नियम 10 सी. पी. सी.--अस्थाई व्यादेश
Temporary injunction and interlocutory OrdersORDER 39 CPCअस्थाई व्यादेश और अंतर्वर्ती आदेश आदेश 39 सी. पी. सी.
सिविल प्रक्रिया सहिंता में आदेश 39 बहूत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उक्त आदेश अस्थायी व्यादेश एवं वाद कालीन आदेश
बाबत प्रक्रिया सम्बंधित हैं | जब पक्षकार न्यायलय में वाद प्रस्तुत करता हैं तब विरोधी पक्षकार के किसी अपकृत्य को तत्काल रोकने की आवयश्कता होती हैं | वाद कि लम्बी प्रक्रिया होने से तत्काल अनुतोष पक्षकार को वाद के साथ इस आदेश के अंतर्गत प्राथना पत्र प्रस्तुत करने पर न्यायलय तत्काल विरोधी पक्ष के अपकृत्य को रोकने का आदेश प्रदान कर सकते हैं। न्यायलय की सामान्य प्रक्रिया में यथास्थिति(status quo) बनाये रखने का आदेश प्रदान किया जाता हैं । यदि कोई पक्षकारवाद ग्रस्त ऐसी सम्पति को क्षति पहुचाने का कार्य करता हैं या ऐसे कार्य करने की धमकी देता हैं तो निश्चित ही यह कृत्य दुसरे पक्षकार के लिए अपूर्णीय क्षति का कृत्य करता हैं एसी अवस्था में न्यायलय का प्रथम कर्तव्य हैं की वाद के लंबित रहने के दौरान या उसके अंतिम निर्णय तक वादग्रस्त सम्पति की सुरक्षा करने के लिए वाद के रोज की स्थति को बनाये रखने का आदेश व्यादेश(njunction )विरोधी पक्ष के विरुद्ध जारी करे।
व्यादेश 4 प्रकार के होते हैं -
1 अस्थायी व्यादेश ( temporary injunction)
2 स्थायी व्यादेश (prohibitory injun)
3 निषेधात्मक व्यादेश(Prohibitory injunction)
4.आज्ञात्मक व्यादेश(Mandatory injuction)
सिविल प्रक्रिया संहिता में अस्थाई निषेधाज्ञा का ही उपबंध है।अन्य तीनो व्यादेश के बारे में विशिष्ठ अनुतोष अधिनियम 1963(Specific Relief Act,1963)में प्रावधान किया गया है।
आदेश 39 सी पी सी-
नियम 1.वे दशाएं जिनमे अस्थाई व्यादेश दिया जा सकेगा-
जहा किसी वाद में शपथ पत्र द्वारा या अन्यथा यह साबित कर दिया जाता है कि--
(क) वाद में किसी विवादग्रस्त सम्पति के बारे में यह खतरा है कि वाद का कोई भी पक्षकार उसका नष्ट करेगा ,या नुकशान पहुचायेगा या अन्य अंतरित करेगा,या डिक्री के निष्पादन में उसका सदोष विक्रय कर दिया जावेगा अथवा
(ख) प्रतिवादी अपने लेनदारों को (कपट वंचित) करने की दृष्टि से अपनी सम्पति को हटाने या व्ययन करने की धमकी देता है या ऐसा करने का आशय रखता है,
(ग) प्रतिवादी वादी को वाद में विवादग्रस्त किसी सम्पति से बेकब्जा करने की या वादी को उस सम्पति के सम्बध में अन्यथा क्षति पहुचाने की धमकी देता है,--वहां न्यायालय ऐसे कार्य को अवरूढ करने के लिये आदेश द्वारा अस्थाई व्यादेश दे सकेगा,या सम्पति के दुर्व्यन किये जाने ,नुकशान किये जाने,अन्य संक्रांत किये जाने, ,हस्तांतरण किये जाने ,हटाये जाने या व्ययनित किये जाने जाने से अथवा वादी को वाद में विवादग्रस्त सम्पति से बेकब्जा करने या वादी को उस सम्पति के सम्बन्ध में अन्यथा क्षति पहुचाने से रोकने और निवारित करने के प्रयोजन से ऐसे अन्य आदेश जो न्यायालय ठीक समझे ,तब तक के लिये कर सकेगा जब तक उस वाद का निपटारा न हो जाय या जब तक अतिरिक्त आदेश न दे दिए जाये ।
नियम 2.भंग की पुनरावर्ती या जारी रखना को रोकने के लिए व्यादेश-
नियम 2 (1). संविदा भंग करने से या किसी भी प्रकार की अन्य क्षति करने से प्रतिवादी को अवरुद्ध करने के किसी भी वाद में, चाहे वाद में प्रतिकर का दावा किया गया हो या न किया गया हो, वादी प्रतिवादी को परिवादित संविदा भंग या क्षति करने से या कोई भी संविदा भंग करने से या तीव्र क्षति करने से, जो उसी संविदा से उद्भूत होती हो या उसी सम्पति या अधिकार से सम्बंधित हो, अवरुद्ध करने के अस्थाई व्यादेश के लिए न्यायालय से आवेदन, वाद प्रारंभ होने के पश्चात किसी भी समय और निर्णय के पहले या पश्चात कर सकेगा |
नियम 2(2). न्यायालय ऐसा व्यादेश, ऐसे व्यादेश की अवधि के बारे में ,लेखा करने के बारे में, प्रतिभूति देने के बारे में, ऐसे निबन्धनों पर,या अन्यथा, न्यायालय जो ठीक समझे, आदेश द्वारा दे सकेगा।
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अस्थाई व्यादेश--आवश्यक शर्ते।
अस्थाई व्यादेश देना या नहीं देना तीन स्थापित सिंद्धान्तो पर निर्भर करता है।
1. क्या प्राथी का प्रथम दृष्टया मामला है।
2.क्या सुविधा का संतुलन प्राथी के पक्ष में है।
क्या प्राथी को अपूर्तनीय क्षति होगी।
प्रथम दृष्टया मामला (Prima facie Case) --
प्रथम दृष्टया मामला से तात्पर्य उस मामले से है जिसमे उसके समर्थन में दी गयी साक्ष्य पर विश्वास किया जा सके।इसका अर्थ यह नहीं है कि उस मामले को पूर्ण रूप से साबित कर दिया गया है बल्कि जिस मामले में ठोस व मजबूत रूप से स्थापित हुआ कहा जा सके।इस प्रकार ऐसा मामला जिसे यदि विरोधी पक्ष खंडित नहीं कर सके तो वादी को डिक्री मिल जायेगी।ऐसा मामला प्रथम दृष्टया मामला कहा जायेगा।
कोई मामला प्रथमिक है या नहीं इसका भार वादी पर होता है। वह शपथ पत्र या अन्य साक्ष्य द्वारा यह साबित करे कि उसके हक़ में प्रथम दृष्टया मामला मामला बनता है जिसका अंतिम निर्णय वाद में विचारण करके होगा।
प्रथम दृष्टया मामले का अर्थ प्रथम दृष्टया हक़ से नहीं है जो विचारण पर साक्ष्य से साबित होता है।प्रथम दृष्टया मामला सदभाव पूर्वक उठाया गया एक सारभूत प्रशन है जिसे अन्वेषण और गुणा गुण पर विनिश्चित किया जाना है।केवल प्रथम दृष्टया मामला से संतुष्ट होना ही व्यादेश का आधार नहीं है बल्कि न्यायालय को अन्य निम्न बिंदुओं को भी देखना होगा।
सुविधा का संतुलन--
व्यादेश चाहने वाले पक्ष को सुविधा संतुलन उसके पक्ष में होना बताना पड़ेगा।न्यायालय जब व्यादेश मंजूर कर रहा हो या इंकार कर रहा हो तो उसे क्षति को उस सारभूत रिष्टि को ध्यान में रखते हुए युक्ति युक्त न्यायिक विवेचन का प्रयोग करना चाहिये जो पक्षो को व्यादेश मंजूर करने पर दूसरे पक्ष को हो सकती है।
सुविधा संतुलन उसके पक्ष में होना आवश्यक है जो अनुतोष की मांग करता है।
. ए.आई. आर 1990 सु. कोर्ट.867
अपूर्तनीय क्षति--
यदि पक्षकार को व्यादेश नहीं दिया गया तो पक्षकार को अपूर्तनीय क्षति होगी और व्यादेश देने के अलावा पक्षकार को अन्य कोई उपचार उपलब्ध नहीं है और क्षति या बेकब्जे के परिणामो से उसे संरक्षण की आवश्यकता है।यह एक ऐसी तात्विक क्षति होनी चाहिये जिसकी पूर्ति नुकसानी के रूप में पर्याप्त रूप से नहीं की जा सकती हो।यह भी कह सकते है कि उस क्षति की पूर्ति सामान्यतया धन से नहीं की जा सकती हो।
व्यादेश प्राप्त करने के लिये उक्त तीनों घटको का होना आवश्यक है,इनमे से एक के भी आभाव में न्यायालय व्यादेश देने से इंकार कर देगा।
न्यायालय यदि मुलभुत घटको पर विचार नहीं करता है तथा तीनो घटको पर विचार नहीं किया है तो आदेश विधि के प्रतिकूल है और विचारण न्यायालय को तीनों घटको पर निष्कर्ष अभिलिखित करना आज्ञापक था।विचारण न्यायालय का आदेश अपास्त किया।
2013(3) डी. एन. जे. (राज.)1006
अस्थाई व्यादेश प्राप्त होने के लिए तीन शर्ते है जो साथ साथ स्थित होनी चाहिये। यदि इन में से एक का भी आभाव होगा तो व्यादेश प्रदान नहीं होगा।
1996(1) डी. एन. जे.(राज.)12
अस्थाई व्यादेश--आवश्यक शर्ते-इन शर्तों का स्पष्टीकरण।
1995(1)डी. एन. जे.(राज.)59
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आदेश 39 नियम 1व 2में ऐश
अस्थाई व्यादेश प्राप्त करने के लिए उक्त तीनों शर्तो का विद्यमान होना आवश्यक है।
यह भी पढ़े - वाद की रचना (FRAME OF SUIT )
व्यादेश व न्यायालय की अन्तर्निहित शक्तियां
Order 39 Rule 2A. CPC
Consequence of disobedience or breach of injunction--
आदेश 39 नियम 2 (क) सी. पी. सी.
व्यादेश की अवज्ञा या भंग का परिणाम
संहिता में आदेश 39 नियम 1-2 में पारित आदेश की कोई भी पक्षकार अवज्ञा करता है तो उस बाबत उसे न्यायालय के अवमानना के लिए दण्डित करने व उसे सिविल कारावास में निरुद्ध करने तथा उसकी सम्पति कुर्क करने या बेचने सम्बन्धी आदेश देने की शक्तियां न्यायालय को नियम 2 क के अंतर्गत प्रदत्त की गई है।आदेश की पालना कराने के लिए सहिंता का यह मत्वपूर्ण उपबन्ध है जो संहिता में निम्न प्रकार से उपबंधित किया गया है-
आदेश 39 2(क) व्यादेश की अवज्ञा या भंग का परिणाम-
(1) नियम 1 या नियम 2 के अधीन दिए गए किसी व्यादेश या किये गए अन्य आदेश की अवज्ञा की दशा में या जिन निबन्धनों पर आदेश दिया गया था या आदेश किया गया था उनमे से के किसी निबंधन के भंग की दशा में व्यादेश देने वाला या आदेश करने वाला न्यायालय या ऐसा कोई न्यायालय, जिसे वाद या कार्यवाही अंतरित की गयी है,यह आदेश दे सकेगा कि ऐसी अवज्ञा या भंग करने के दोषी व्यक्ति की सम्पति कुर्क की जाए और यह भी आदेश दे सकेगा कि वह व्यक्ति तीन माह से अनधिक अवधि के लिए सिविल कारागार में तब तक निरुद्ध किया जाए जब तक की इस बीच में न्यायालय उसकी निर्मुक्ति के लिए निदेश न दे दे।
(2) इस अधिनियम के अधीन की गई कोई कुर्की एक वर्ष से अधिक समय के लिये प्रवर्त नहीं रहेगी,जिसके ख़त्म होने पर यदि अवज्ञा या भंग जारी रहे तो कुर्क की गयी सम्पति का विक्रय किया जा सकेगा और न्यायालय आगमो में से ऐसा प्रतिकर जो वह ठीक समझे उस पक्षकार को दिला सकेगा जिसकी क्षति हुई हो,और शेष रहे तो उसे हक़दार पक्षकार को देगा।
संहिता के आदेश 39 नियम 1 से 10 तक के तमाम उपबन्धों के अध्ययन के लिए यहां Click कर पढ़े।
संहिता के आदेश 39 नियम 1-2 के अधीन दिया गया आदेश पक्षकारो पर बाध्यकारी होता है तथा पक्षकारो को उस व्यादेश आदेश का पालन करना होता है कोई भी उस आदेश की अवज्ञा या भंग करता है तो उसके परिणाम उस पक्षकार को भुगतने होंगे।उन्ही की व्यवस्था इस नियम के अंतर्गत की गयी है।चूँकि व्यादेश का आदेश न्यायालय द्वारा दिया जाता है तथा कोई भी पक्षकार उस आदेश की अवज्ञा या भंग करता है तो सामान्य भाषा में इसे न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court) ही माना व कहा जाता है।
इस आदेश की अवज्ञा करने पर न्यायालय निम्न आदेश दे सकता है-
1. आदेश की अवज्ञा करने वाले पक्षकार को सिविल कारावास में निरुद्ध करने का आदेश दे सकेगा परन्तु यह अवधि तीन माह से अधिक की नहीं होगी।
2. उस पक्षकार की सम्पति कुर्क करने का आदेश दे सकता है।
3. कुर्क की गयी सम्पति का आदेश अधिकतम एक वर्ष की समयावधि तक ही प्रवर्त होगा।
4. उक्त एक वर्ष की अवधि के पश्चात भी अवज्ञा या भंग जारी रहे तो कुर्क की गयी सम्पति का विक्रय कर दिया जायेगा व क्षतिग्रस्त पक्षकार को प्रतिकर दिलवा कर क्षति पूर्ति की जायेगी।
5. न्यायालय की अवमानना के लिए उसे दण्डित किया जा सकेगा।
इस प्रकार सहिंता का आदेश 39 नियम 2 (क)एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण उपबंध हैं |
आदेश 39 नियम 2 (क)के सम्बन्ध में निम्न न्यायिक महत्वपूर्ण निर्णय इस उपबंध को समझने के लिए दिए जा रहे हैं -
1. आदेश 39 नियम 2 (क) के अंतर्गत पारित निरुद्ध के आदेश के विरुद्ध अपील-- इस आदेश के विरुद्ध अपील पोषणीय है।
AIR 1994 Bom. 38
2. जहाँ अवमानना की कार्यवाही प्रस्तुत की जाती है और पारित आदेश संदिग्ध हो।वहा व्यादेश भंग का प्रशन नहीं है। कार्यवाही शून्य होने से निरस्त योग्य है।
AIR 2000 Bom.78
3.विचारण न्यायालय ने अवमान कर्तागण प्राथीगण को एक माह के अंदर सम्पति को प्रास्थिति को बहाल करने का निर्देश--वैधता--
सम्पति की कुर्की का आदेश पारित नहीं किया--निर्णीत, आदेश उपान्तरित किया तथा प्रार्थीगण की सम्पति एक वर्ष की अवधि के लिए कुर्की के अधीन रहेगी जिसके दौरान निर्देशों की पालना करने हेतु प्रार्थीगण स्वतन्त्र है।
2009 (2) DNJ (Raj.) 807
4. व्यादेश का आदेश एकपक्षीय पारित हुआ तब क्या प्रभाव और परिणाम होगा ? अभिनिर्धारित, पक्षकार के अभिभाषक पर सुचना अथवा नोटिस का तमिल होना, सिविल कार्यवाही में प्रयाप्त मन जा सकता हैं परन्तु दाण्डिक मामले के दायित्व में, ऐसी कोई उपधरणा नही हो सकेगी की विपक्षी पक्षकार को सुचना की तमिल हुई अथवा उसे ज्ञान रहा हो |
1997(2)DNJ Raj.652
5. अपिलान्ट अस्थाई व्यादेश के प्राथना पत्र में पक्षकार नही था नहीं उसके विरुद्ध कोई व्यादेश जारी हुआ, वाद भी कार्यवाही के पूर्व निरस्त हो चूका था | अपिलांट के विरुद्ध अवमानना का आदेश निरस्त किया गया |
1994(2)DNJ (Raj.)366
6. आदेश की अवमानना के मामले में कोई भी आदेश पारित करने के पूर्व विपक्षी पक्षकार को सुनना आवश्यक हैं |
AIR 2002 J&K 134
7. कोई भी आदेश नियम 2(क) के अंतर्गत पारित किया जाता हैं और उस आदेश की कोई अपील या रिविजन नही किया जाता हैं और उक्त आदेश को डिक्री की अपील में चुनोती दी जाता हैं | अभिनिर्धारित - उक्त आदेश की अलग से अपील पोषणीय हैं तथा उक्त आदेश के विरुद्ध मुख्य डिक्री की अपील में चुनोती नही दी जा सकती हैं |
AIR 1991 Ker. 44
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Ex - Parte Temporary Injunction Order 39 Rule 3 C.P.C.
एकपक्षीय अस्थाई व्यादेश - आदेश 39 नियम 3 सी.पी.सी.
विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत हैं की कोई भी आदेश न्यायालय द्वारा विरोधी पक्षकार को सुचना देने के पश्चात ही पारित किया जा सकता हैं यह न्यायालय का परम कर्तव्य हैं | अस्थाई व्यादेश का आदेश भी विरोधी पक्षकार को सामान्यतः सूचना देने के पश्चात तथा सुनवाई का अवसर दिए जाने के पश्चात ही दिया जाना न्याय संगत हैं परन्तु नयायालय को यह समाधान करा दिया जाता हैं की विरोधी पक्षकार को सुचना दिए जाने वाले समय में विलम्ब होगा और उक्त विलम्ब से व्यादेश विफल हो जायेगा तो ऐसी परिस्थिति में न्यायालय विरोधी पक्षकार को सुचना दिए बिना अस्थाई व्यादेश का आदेश ऐसे कारणों को अभिलिखित करते हुए अस्थाई व्यादेश प्रदान कर सकता हैं | सामान्य भाषा में इसे एकपक्षीय व्यादेश का आदेश भी कहा जाता हैं | सहिंता में विरोधी पक्षकार को सुचना दिए बिना अस्थाई व्यादेश के प्रावधान आदेश 39 नियम 3 में किये गये हैं तथा यदि आएश 3 के अंतर्गत कोई आदेश पारित किया जाता हैं तो उक्त प्राथना पत्र का निस्तारण नियम 3 (क) के प्रावधानों के अनुसरण में न्यायलय द्वारा किया जाना होता हैं | सहिंता के उक्त नियम निम्न प्रकार हैं -
आदेश 39 नियम 3 - व्यादेश देने से पहले न्यायालय निदेश देगा कि विरोधी पक्षकार को सुचना दे दी जाए-
वहा के सिवाय जहां यह प्रतीत होता है का व्यादेश देने का उद्देश्य विलम्ब द्वारा निष्फल हो जायेगा न्यायालय सब मामलो में व्यादेश देने के पूर्व यह निदेश देगा कि व्यादेश के आवेदन कि सूचना विरोधी पक्षकार को दे दी जाए:
परन्तु जहा यह प्रस्थापना की जाती है कि विरोधी पक्षकार को आवेदन की सुचना दिये बिना व्यादेश दे दिया जाए वहा न्यायालय अपनी ऐसी राय के लिए विलम्ब द्वारा व्यादेश का उद्देश्य विफल हो जायेगा, कारण अभिलिखित करेगा और आवेदक से यह से यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह--
( क) व्यादेश देने वाला आदेश किये जाने के तुरंत पश्चात व्यादेश के लिए आवेदन के साथ निम्न प्रति--
१. आवेदन के समर्थन में फाइल किये शपथ पत्र की प्रति;
२. वाद पत्र की प्रति; और
३. उन दस्तावेजो की प्रति जिन पर आवेदक निर्भर करता है,
विरोधी पक्षकार को दे या उसे रजिस्टर्डकृत डाक द्वारा भेजे, और
(ख) उस तारीख को जिसको ऐसा व्यादेश दिया गया है या उस दिन से ठीक अगले दिन को यह कथन करने वाला शपथ पत्र पेश करे कि उपरोक्त प्रतियां इस प्रकार दे दी गयी है या भेज दी गयी है।
आदेश 39 नियम 3 ( क) व्यादेश के लिए आवेदन का न्यायालय द्वारा तीस दिवस के भीतर निपटाया जाना -
जहाँ कोई व्यादेश विरोधी पक्षकार को सुचना दिए बिना दिया गया है वहां न्यायालय आवेदन को ऐसी तारीख से जिसको व्यादेश दिया गया था, तीस दिवस के भीतर निपटाने का प्रयास करेगा और जहा वह ऐसा करने में असमर्थ है वहा ऐसी असमर्थता के लिए कारण अभिलिखित करेगा।
उपरोक्त नियम के अध्यन से स्पष्ट हैं की नियम 3 के अंतर्गत न्यायालय विरोधी पक्षकार को सुचना दिए बिना अस्थाई व्यादेश का आदेश प्रार्थी को प्रदत्त कर सकेगा तथा इस नियम के अधीन पारित आदेश होने पर न्यायालय नियम 3(क) के अनुसरण में ऐसे प्रदत्त व्यादेश के आदेश की एक प्रति मय वाद पत्र व प्राथना पत्र की प्रति, शपत पत्र एवं अन्य समर्थित दस्तावेजो की प्रतिलिपियाँ विपक्षी पक्षकार को रजिस्टर्ड डाक से विरोधी पक्षकार को भेजी जाएगी तथा जिस तारीख को व्यादेश का आदेश दिया गया हैं उसके अगले दिन यह कथन करने वाला शपत पत्र की नियम 3 की पालना में उक्त तमाम उपरोक्त प्रतियाँ विरोधी पक्षकार को देदी या भेज दी गयी हैं | इस आशय का निदेश एकपक्षीय व्यादेश प्राप्त करने वाले पक्षकार को देगा |
इस प्रकार सहिंता का यह एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण उपबंध हैं |
इस सम्बन्ध में निम्न न्यायिक महत्वपूर्ण निर्णय इस उपबंध को समझने के लिए दिए जा रहे हैं -
(1) जब न्यायालय द्वारा सुनवाई का नोटिस दिए बिना व्यादेश जारी करता हैं तो उसे कारणों का उल्लेख करना आवश्यक होगा |
AIR 1989 Mad. 139
(2) एकपक्षीय अस्थाई व्यादेश न्यायालय बिना विवेकाधीन के पारित करता हैं और वादी के अनाधिकृत निर्माण को जारी रखता हैं तो ऐसा आदेश जारी नही रखा जा सकता हैं |
AIR 1996 Bom. 304
(3) एकपक्षीय अस्थाई व्यादेश का आदेश पारित करते समय न्यायालय को उसके कारणों को अभिलिखित किये जाने के प्रावधान आज्ञापक हैं और उनका उलंगन का अभिवाक न्यायालय उठा सकेगा |
AIR 2003 Cal. 96
(4) एकपक्षीय अस्थाई व्यादेश का आदेश नियम 3 की पूर्ण पालना होने पर दुर्लभ मामलो में ही जारी किया जा सकता हैं जहा विलम्ब के कारण न्याय विफल होता हो, परन्तु व्यादेश का आदेश में न्यायालय को कारणों का उल्लेख करना आवश्यक होगा |
AIR 1990 All. 134
(5) एकपक्षीय अस्थाई व्यादेश का आदेश विशिष्ट मामलो में ही दिया जा सकता हैं तथा न्यायालय को विशिष्ट कारणों का उल्लेख आदेश में करना होगा,नियम की व्याख्या की गयी |
1994(2) DNJ (S.C.) 213
(5) एकपक्षीय अस्थाई व्यादेश का जारी होना तथा विरोधी पक्षकार को जारी होना - निर्णित व्यादेश का आदेश तथा नोटिस जारी होने के आदेश अपीलीय नही हैं, यह अंतिम आदेश नियम 1, 2 में पारित नही हुआ हैं |
AIR 1991 NOC 70(Ori.)
(6) एकपक्षीय अस्थाई व्यादेश का जारी होने पर प्राथना पत्र को 30 दिन के भीतर निर्णित करने के आज्ञापक प्रावधान हैं - 30 दिन के पश्चात भी आदेश का बना रहना अवैध हैं आज्ञापक प्रावधानों का उलंगन हैं |
AIR 1995 (Mad.) 217
3 ( क) व्यादेश के लिए आवेदन का न्यायालय द्वारा तीस दिवस के भीतर निपटाया जाना -
जहाँ कोई व्यादेश विरोधी पक्षकार को सुचना दिए बिना दिया गया है वहां न्यायालय आवेदन को ऐसी तारीख से जिसको व्यादेश दिया गया था, तीस दिवस के भीतर निपटाने का प्रयास करेगा और जहा वह ऐसा करने में असमर्थ है वहा ऐसी असमर्थता के लिए कारण अभिलिखित करेगा।
Order for injunction may be discharged,varied or set aside--Order 39 Rule 4 CPC.
व्यादेश के आदेश को प्रभावोन्मुक्त,उसमे फेरफार या उसे अपास्त किया जाना--
सिविल प्रक्रिया सहिंता में आदेश 39 बहूत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उक्त आदेश अस्थायी व्यादेश एवं वाद कालीन आदेश बाबत प्रक्रिया सम्बंधित हैं | जब पक्षकार न्यायलय में वाद प्रस्तुत करता हैं तब विरोधी पक्षकार के किसी अपकृत्य को तत्काल रोकने की आवयश्कता होती हैं | वाद कि लम्बी प्रक्रिया होने से तत्काल अनुतोष पक्षकार को वाद के साथ इस आदेश के अंतर्गत प्राथना पत्र प्रस्तुत करने पर न्यायलय तत्काल विरोधी पक्ष के अपकृत्य को रोकने का आदेश प्रदान कर सकते हैं। न्यायलय की सामान्य प्रक्रिया में यथास्थिति(status quo) बनाये रखने का आदेश प्रदान किया जाता हैं । यदि कोई पक्षकारवाद ग्रस्त ऐसी सम्पति को क्षति पहुचाने का कार्य करता हैं या ऐसे कार्य करने की धमकी देता हैं तो निश्चित ही यह कृत्य दुसरे पक्षकार के लिए अपूर्णीय क्षति का कृत्य करता हैं एसी अवस्था में न्यायलय का प्रथम कर्तव्य हैं की वाद के लंबित रहने के दौरान या उसके अंतिम निर्णय तक वादग्रस्त सम्पति की सुरक्षा करने के लिए वाद के रोज की स्थति को बनाये रखने का आदेश व्यादेश(njunction )विरोधी पक्ष के विरुद्ध जारी करे।
संहिता में न्यायालय द्वारा इस प्रकार दिया गया आदेश को किसी पक्षकार द्वारा आवेदन देने पर न्यायालय किसी प्रक्रम पर उस आदेश को प्रभाव मुक्त या पारित आदेश में फेर फार या पारित आदेश को अपास्त करने सम्बंधी उपबन्ध संहिता के आदेश 39 नियम 4 में किये गए है।
नियम 4 संहिता में इस प्रकार से उपबंधित किया गया है---
4. व्यादेश के आदेश को प्रभावमुक्त,उसमे फेर फार या अपास्त किया जा सकेगा-
व्यादेश के किसी भी आदेश को उस आदेश से असंतुष्ट किसी पक्षकार द्वारा न्यायालय से किये गये आवेदन पर उस न्यायालय द्वारा प्रभाव मुक्त, उसमे फेर फार या उसे अपास्त किया जा सकेगा;
परन्तु यदि अस्थाई व्यादेश के लिए किसी आवेदन में या ऐसे आवेदन का समर्थन करने वाले किसी शपथ पत्र में किसी पक्षकार ने किसी तात्विक विशिष्ट के सम्बध में जानते हुए मिथ्या या भ्रामक कथन किया है और विरोधी पक्षकार को सुचना दिए बिना व्यादेश दिया गया था तो न्यायालय व्यादेश को उस दशा में अपास्त कर देगा जिसमे वह अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से यह समझता है कि न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक नही है:
परन्तु यह और कि जहां किसी पक्षकार को सुनवाई का अवसर दिये जाने के पश्चात व्यादेश के लिये आदेश पारित किया गया है वहा ऐसे आदेश को उस पक्षकार के आवेदन पर तब तक डिस्चार्ज फेर फार या अपास्त किया जाना आवश्यक न हो गया हो या जब तक न्यायालय का यह समाधान नही हो जाता है कि आदेश से उस पक्षकार को कठिनाई हुई हो।
इस नियम के अध्ययन से स्पष्ट है कि एकपक्षीय पारित आदेश या सुनवाई के पश्चात पारित आदेश को न्यायालय असन्तुष्ट पक्षकार के आवेदन पर न्यायालय आदेश 39 के अधीन दिए गए व्यादेश के आदेश को उपान्तरित या अपास्त कर सकता है।
इस सम्बन्ध में निम्न न्यायिक महत्वपूर्ण निर्णय इस उपबंध को समझने के लिए दिए जा रहे हैं -
1. एक पक्षीय व्यादेश का आदेश-
इस आदेश को वादी को सुनवाई का अवसर दिए बिना अपास्त किया--निर्णीत,आदेश विधि सम्मत नहीं-- जब व्यादेश का आदेश दिया जाता है तो उसे पक्षकारो की सुनवाई किये बिना अपास्त नही किया जा सकता है।
AIR 1988 HP 31
2. स्थगन आदेश को उपान्तरित करने हेतु आवेदन ख़ारिज किया--
बालिकाओं के शैक्षिणक संस्थान स्थापित करने हेतु भूमि दान की--
दान विलेख को निरस्त करने हेतु वाद--कथन कि वह अन्य प्रयोजन हेतु निर्माण नहीं करेगा--आदेश उपान्तरित किया और न्यायालय की अनुमति बिना अपिलांट सम्पति को तृतीय पक्ष को किसी भी प्रकार से अंतरित नहीं करेगा।
2012 (2) DNJ (Raj.)789
3. घोषणा व व्यादेश का वाद--विपक्षी पक्षकार को नोटिस जारी किये गये। अधिवक्ता द्वारा पैरवी की हिदायत नहीं होना जाहिर किया--इन परिस्थितियों में प्राथी व्यादेश पाने का पात्र है-- व्यादेश अपास्त करने का आवेदन निरस्त किया गया।
AIR 1992 Raj. 165
4.एकपक्षीय व्यादेश आदेश का अपास्त किया जाना-- जहां एकपक्षीय व्यादेश के आदेश को अपास्त करने का आवेदन कि व्यादेश आदेश जारी होने के विशिष्ट( निर्धारित) समय में निपटारा नहीं--एकपक्षीय आदेश स्वतः ही अपास्त।
AIR 1991 Cal. 272
5. अंतरिम व्यादेश के आदेश को अपास्त करने का आवेदन निरस्त किया--प्रार्थी का तर्क कि उसने आदेश दिनांक 2.4.2010 के पारित करने के पूर्व ही सम्पति विक्रय की तथा विचारण न्यायालय के आदेश की पालना नही की जा सकती--प्रार्थी पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं--निर्णीत, आदेश में प्रतिकूलता अथवा अवैधता नहीं है।
2011(1)DNJ( Raj) 93
6. व्यादेश के आदेश का अपास्त किया जाना-- उच्च न्यायालय द्वारा मुख्य विवाद्यक पर वाद की पोषणीयता व पारिवारिक सेटलमेंट पर फाइंडिंग देना विधिसम्मत नहीं।
आदेश बनाये नहीं रखा जा सकता-- आदेश अपास्त किया गया व मामला पुनः निर्णीत करने हेतु लौटाया गया।
2014 (4) DNJ (SC) 1078
5. निगम को निर्दिष्ट व्यादेश उसके अधिकारियो पर आबद्ध होगा-
किसी निगम को निर्दिष्ट व्यादेश न केवल निगम पर ही बाध्यकर होगा बल्कि निगम के उन सभी सदस्य और अधिकारियो पर भी बाध्यकारी होगा जिनके व्यक्तिगत कार्य को अवरुद्ध करने के लिए वह चाहा गया है।
6. अंतरिम विक्रय को आदेश देने की शक्ति-
न्यायालय वाद के किसी भी पक्षकार के आवेदन पर ऐसे आदेश में नामित किसी भी व्यक्ति द्वारा और ऐसी रीती से और ऐसे निबन्धनों पर जो न्यायालय ठीक समजे, किसी भी ऐसी चल संपत्ति के विक्रय का आदेश दे सकेगा जो ऐसे वाद की विषय वस्तु हैं या ऐसे वाद में निर्णय के पूर्व कुर्क की गयी हैं और जो शीघ्रतया और प्राकृत्या नष्ट होने योग्य हैं या जिसके बाबत किसी अन्य न्यायसंगत और पर्याप्त हेतुक से ये वांछनीय हो की उसका तुरंत विक्रय कर दिया जाये ।
7. वाद की विषय वस्तु का निरोध, परिक्षण, निरक्षण आदि -
(१) न्यायालय वाद के किसी भी पक्षकार के आवेदन पर और ऐसे निबन्धनों पर जो वो ठीक समझे-
(क) किसी भी ऐसी सम्पति के , जो ऐसे वाद की विषय वस्तु हैं या जिसके बारे में उस वाद में कोई प्रश्न उतपन हो सकता हो, निरोध, परिरक्षण या निरक्षण के लिए आवेदन कर सकेगा ।
(ख) ऐसे वाद के किसी भी अन्य पक्षकार के कब्जे में किसी भी भूमि या भवन में पूर्वोक्त सभी या किन्ही परियोजन के लिए प्रवेश करने को किसी भी व्यक्ति को प्राधिकृत कर सकेगा; तथा
(ग) पूर्वोक्त सभी या किन्ही परियोजनों के लिए किन्ही भी ऐसे नमूनों का लिया जाना या किसी भी ऐसे प्रेक्षण या प्रयोग का किया जाना, जो पूरी जानकारी या साक्ष्य
अभिप्राप्त करने प्रयोजन के लिए आवश्यक या उचित प्रतीत हो , प्राधिकृत क्र सकेगा ।
(२) आदेशिका के निष्पादन संबंधी उपबन्ध प्रवेश करने के लिए इस नियम के अधीन प्राधिकृत व्यक्तियों को यथा आवश्यक परिवर्तन सहित लागु होंगे ।
जैसा की कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इलाहबाद बैंक बनाम सुरेन्द्र नाथ और अन्य में अभिनिर्धारित किया हैं की कमिशनर रिपोर्ट बाबत विचरण न्यायालय के समक्ष आपति नहीं उठाई जाती हैं तो अपीलीय न्यायालय के समक्ष आपति अनुमति नहीं दी जा सकती हैं |
AIR1997Cal.80 .
न्यायालय न्याय हित में ऐसी सम्पति जो वाद की विषय वास्तु नहीं हैं उसका भी निरक्षण करने की शक्ति हैं
AIR1996Bom.96.
(8) ऐसे आदेशो के लिए आवेदन सुचना के पश्चात किया जायेगा -
(१) वादी द्वारा नियम 6 और 7 के अधीन आदेश के लिए आवेदन वाद के प्रस्तुत किये जाने के पश्चात किसी भी समय किया जा सकेगा ।
(२) प्रतिवादी द्वारा ऐसे ही आदेश के लिए आवेदन उपसंजात होन के पश्चात किसी भी समय किया जा सकेगा।
(३) इस प्रयोजन के लिए केकिये गए आवेदन पर नियम 6 या नियम 7 के अधीन आदेश करने के पूर्व न्यायालय उसकी सुचना विरोधी पक्षकार को देने का निदेश वहां के सिवाय देगा जहाँ ये प्रतीत हो की ऐसा आदेश करने का उद्देश्य विलम के कारण निष्फल हो जायेगा ।
(9) जो भूमि वाद की विषय वस्तु हैं उस पर पक्षकार का तुरंत कब्ज़ा कब कराया जा सकेगा -
जहा सरकार को राजस्व देने वाली भूमि या विक्रय के दायित्व के अधीन भू-धृति वाद की विषय वस्तु हैं वहाँ, यदि पक्षकार जो ऐसी भूमि या भू धरती पर कब्ज़ा रखता हैं , यथा स्थति सरकारी राजस्व या भू-धृति के स्वत्वधारी को शोध्य भाटक देने में अपेक्षा करता हैं और परिणामतः ऐसी भूमि या भू-धृति के विक्रय के लिए आदेश दिया गया हैं तो उस वाद के किसी भी अन्य पक्षकार का जो हितबद्ध होने का दावा करता हैं तो तुरंत कब्ज़ा विक्रय के पहले से शोध्य राजस्व भाटक का संदाय कर दिए जाने पर न्यायालय के विवेकानुसार प्रतिभूति सहित या रहित कराया जा सकेगा ।
और एस प्रकार संदत्त रकम को उस पर ऐसी दर से ब्याज सहित जो न्यायालय ठीक समझे, न्यायालय अपनी डिक्री में व्यतिकर्मी के विरुद्ध अधिनिर्णित कर सकेगा या इस प्रकार संदत्त रकम को उस पर ऐसी दर से ब्याज सहित जो न्यायालय आदेश करे, लेखायो के किसी ऐसे समायोजन में, जो वाद में पारित डिक्री द्वारा निर्दिष्ट किया गया हो, प्रभावित कर सकेगा |
(10) न्यायालय में धन आदि का जमा किया जाना -
जहा वाद की विषय वस्तु धन या ऐसी कोई अन्य वस्तु हैं जिसका परीदान किया जा सकता हैं , और उसका कोई भी पक्षकार यह स्वीकार करता हैं कि वह ऐसे धन या ऐसी अन्य वस्तु को किसी अन्य पक्षकार के न्यासी के रूप में धारण किये हुए हैं या वह अन्य पक्षकार की हैं या अन्य पक्षकार को शोध्य हैं वहा न्यायालय अपने अतिरिक्त निदेश के अधीन रहते हुए यह आदेश दे सकता हैं कि उसे न्यायालय में जमा किया जाये या प्रतिभूति सहित या रहित ऐसे अंतिम नामित पक्षकार को परिदत्त किया जाये ।
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