Powered by Blogger.

Featured Post

Order 22 Rule 4 CPC Procedure in the case of death of one of several defendants of sole defendant.

Order 22 Rule 4 CPC Procedure in the case of death of one of several defendants of sole defendant.  आदेश 22 नियम 4 सीपीसी- कई प्रतिवादियो मे...

 Order for injunction may be discharged,varied or set aside--Order 39 Rule 4 CPC.
 व्यादेश के आदेश को प्रभावोन्मुक्त,उसमे फेरफार या उसे अपास्त किया जाना--

         सिविल प्रक्रिया सहिंता में आदेश 39 बहूत ही महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उक्त  आदेश अस्थायी व्यादेश एवं वाद कालीन आदेश बाबत प्रक्रिया सम्बंधित हैं | जब पक्षकार न्यायलय में वाद प्रस्तुत करता हैं तब विरोधी पक्षकार के किसी अपकृत्य को तत्काल रोकने की आवयश्कता होती हैं | वाद कि लम्बी प्रक्रिया होने से तत्काल अनुतोष पक्षकार को वाद के साथ इस आदेश के अंतर्गत प्राथना पत्र प्रस्तुत करने पर न्यायलय तत्काल विरोधी पक्ष के अपकृत्य को रोकने का आदेश प्रदान कर सकते हैं। न्यायलय की सामान्य प्रक्रिया में यथास्थिति(status quo)  बनाये रखने का आदेश प्रदान किया जाता हैं ।  यदि कोई पक्षकारवाद ग्रस्त ऐसी सम्पति को क्षति पहुचाने का  कार्य करता हैं या ऐसे कार्य करने की धमकी देता हैं तो निश्चित ही यह कृत्य दुसरे पक्षकार के लिए अपूर्णीय क्षति का कृत्य करता हैं एसी अवस्था में न्यायलय का प्रथम कर्तव्य हैं की वाद के लंबित रहने के दौरान या उसके अंतिम निर्णय तक वादग्रस्त सम्पति की  सुरक्षा करने के लिए वाद के रोज की  स्थति को बनाये रखने का आदेश व्यादेश(njunction )विरोधी पक्ष के विरुद्ध जारी करे।


 संहिता में न्यायालय द्वारा इस प्रकार दिया गया आदेश को किसी पक्षकार द्वारा आवेदन देने पर न्यायालय किसी प्रक्रम पर उस आदेश को प्रभाव मुक्त या पारित आदेश में फेर फार या पारित आदेश को अपास्त करने सम्बंधी उपबन्ध संहिता के आदेश 39 नियम 4 में किये गए है।

आदेश 39 के अन्य उपबन्ध के अध्ययन के लिए यहां Click कर पढ़े।

नियम 4 संहिता में इस प्रकार से उपबंधित किया गया है---
4. व्यादेश के आदेश को प्रभावमुक्त,उसमे फेर फार या अपास्त किया जा सकेगा-
व्यादेश के किसी भी आदेश को उस आदेश से असंतुष्ट किसी पक्षकार द्वारा न्यायालय से किये गये आवेदन पर उस न्यायालय द्वारा प्रभाव मुक्त, उसमे फेर फार या उसे अपास्त किया जा सकेगा;

      परन्तु यदि अस्थाई व्यादेश के लिए किसी आवेदन में या ऐसे आवेदन का समर्थन करने वाले किसी शपथ पत्र में किसी  पक्षकार ने किसी तात्विक विशिष्ट के सम्बध में जानते हुए मिथ्या या भ्रामक कथन किया है और विरोधी पक्षकार को सुचना दिए बिना व्यादेश दिया गया था तो न्यायालय व्यादेश को उस दशा में अपास्त कर देगा जिसमे वह अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से यह समझता है कि न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक नही है:
        परन्तु यह और कि जहां किसी पक्षकार को सुनवाई का अवसर दिये जाने के पश्चात व्यादेश के लिये आदेश पारित किया गया है वहा ऐसे आदेश को उस पक्षकार के आवेदन पर तब तक डिस्चार्ज फेर फार या अपास्त किया जाना आवश्यक न हो गया हो या जब तक न्यायालय का यह समाधान नही हो जाता है कि आदेश से उस पक्षकार को कठिनाई हुई हो।

 इस नियम के अध्ययन से स्पष्ट है कि एकपक्षीय पारित आदेश या सुनवाई के पश्चात पारित आदेश को न्यायालय असन्तुष्ट पक्षकार के आवेदन पर न्यायालय आदेश 39 के अधीन दिए गए व्यादेश के आदेश को उपान्तरित या अपास्त कर सकता है।

इस सम्बन्ध में निम्न न्यायिक महत्वपूर्ण निर्णय इस उपबंध को समझने के लिए दिए जा रहे हैं -
1. एक पक्षीय व्यादेश का आदेश-
इस आदेश को वादी को सुनवाई का अवसर दिए बिना अपास्त किया--निर्णीत,आदेश विधि सम्मत नहीं-- जब व्यादेश का आदेश दिया जाता है तो उसे पक्षकारो की सुनवाई किये बिना अपास्त नही किया जा सकता है।
 AIR 1988 HP 31
2. स्थगन आदेश को उपान्तरित करने हेतु आवेदन ख़ारिज किया--
बालिकाओं के शैक्षिणक संस्थान स्थापित करने हेतु भूमि दान की--
दान विलेख को निरस्त करने हेतु वाद--कथन कि वह अन्य प्रयोजन हेतु निर्माण नहीं करेगा--आदेश उपान्तरित किया और न्यायालय की अनुमति बिना अपिलांट सम्पति को तृतीय पक्ष को किसी भी प्रकार से अंतरित नहीं करेगा।
2012 (2) DNJ (Raj.)789

3. घोषणा व व्यादेश का वाद--विपक्षी पक्षकार को नोटिस जारी किये गये। अधिवक्ता द्वारा पैरवी की हिदायत नहीं होना जाहिर किया--इन परिस्थितियों में प्राथी व्यादेश पाने का पात्र है-- व्यादेश अपास्त करने का आवेदन निरस्त किया गया।
  AIR 1992 Raj. 165
4.एकपक्षीय व्यादेश आदेश का अपास्त किया जाना-- जहां एकपक्षीय व्यादेश के आदेश को अपास्त करने का आवेदन कि व्यादेश आदेश जारी होने के विशिष्ट( निर्धारित) समय में निपटारा नहीं--एकपक्षीय आदेश स्वतः ही अपास्त।
AIR 1991 Cal. 272
5. अंतरिम व्यादेश के आदेश को अपास्त करने का आवेदन निरस्त किया--प्रार्थी का तर्क कि उसने आदेश दिनांक 2.4.2010 के पारित करने के पूर्व ही सम्पति विक्रय की तथा विचारण न्यायालय के आदेश की पालना नही की जा सकती--प्रार्थी पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं--निर्णीत, आदेश में प्रतिकूलता अथवा अवैधता नहीं है।
2011(1)DNJ( Raj) 93

6. व्यादेश के आदेश का अपास्त किया जाना-- उच्च न्यायालय द्वारा मुख्य विवाद्यक पर वाद की पोषणीयता व पारिवारिक सेटलमेंट पर फाइंडिंग देना विधिसम्मत नहीं।
आदेश बनाये नहीं रखा जा सकता-- आदेश अपास्त किया गया व मामला पुनः निर्णीत करने हेतु लौटाया गया।
2014 (4) DNJ (SC) 1078

नोट :- आपकी सुविधा के लिए इस वेबसाइट का APP-CIVIL LAW- GOOGLE PLAY STORE में अपलोड किया गया हैं जिसकी लिंक निचे दी गयी हैं। आप इसे अपने फ़ोन में डाउनलोड करके ब्लॉग से नई जानकारी के लिए जुड़े रहे। 

                 APP-CIVIL LAW- GOOGLE PLAY STORE



0 comments

Post a Comment