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Order 22 Rule 4 CPC Procedure in the case of death of one of several defendants of sole defendant.

Order 22 Rule 4 CPC Procedure in the case of death of one of several defendants of sole defendant.  आदेश 22 नियम 4 सीपीसी- कई प्रतिवादियो मे...

 ORDER 17 -ADJOURNMENTS
आदेश 17 -स्थगन

                     न्यायव्यवस्था का यह सर्वमान्य सिद्धान्त है कि न्याय शीघ्र दिया जाना चाहिए।न्याय में विलम्ब उसको व्यर्थ बना देता है
।विलम्ब से दिये गए न्याय का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।जैसा कहा था है -Dleay defeats the justice।विधि का यह सर्वमान्य सिद्धान्त है कि किसी मामले की एक बार कार्यवाही शुरू होने पर वह निरन्तर जारी रहती हैं और रहनी भी चाहिए।परन्तु कभी कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं जिससे कार्यवाही को चालू रखना न्यायलय के लिए संभव नहीं होता हैं और यदि ऐसी स्थिति में भी कार्यवाही शुरू रखी जाती हैं तो पक्षकारो के साथ न्याय नहीं हो सकता हैं।और इन्हीं सब कारणों के कारण सहिंता के आदेश 17 में स्थगन (adjournments)के बारे में उपबन्ध किये गए हैं।सामान्य भाषा में स्थगन का अभिप्राय किसी कार्यवाही की सुनवाई की तिथि को दूसरी तिथि के लिए स्थगित करना है।सहिंता में आदेश 17 में इस बाबत निम्न प्रकार से उपबंध किये गए हैं।

` आदेश 17 नियम 1--न्यायलय समय दे सकेगा और स्थगित सुनवाई कर सकेगा --

(1)यदि वाद के किसी भी प्रक्रम में पर्याप्त कारण प्रकट किया जाता है तो न्यायलय पक्षकारो या उनमे से किसी को भी समय दे सकेगा और वाद की सुनवाई को समय समय पर कारण लिखित करते हुए स्थगित कर सकेगा।
    परन्तु यह कि ऐसा स्थगन किसी भी पक्षकार को वाद की सुनवाई में तीन बार से अधिक नही दिया जायेगा।

(2) स्थगन के खर्चे - न्यायालय ऐसे हर मामले मे वाद की आगे की सुनवाई के लिए दिन नियत करेगा और  स्थगन के कारण हुए खर्चों के संबंध मे या ऐसे अधिक खर्चे जो न्यायालय उचित समझे , ऐसा आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे :
परंतु

(क) - यदि वाफ की सुनवाई प्रारंभ हो गई हैं तो जब न्यायालय उन असाधारण कारणों से जो उसके द्वारा लेखबद्ध किए जायेगे , सुनवाई का स्थगन अगले दिन से पूरे के लिए करना आवश्यक न समझे , वाद की सुनवाई दिन प्रति दिन तब तक जारी रहेगी जब तक सभी हाजिर साक्षियों की परीक्षा न करली  जाए :

(ख) किसी पक्षकार के अनुरोध पर कोई भी स्थगन ऐसी परिस्थितिओ को छोड़ कर जो उस पक्ष कर के नियंत्रण के बाहर हो , मंजूर नहीं किया जाएगा :

(ग) यह तथ्य स्थगन के लिए आधार नहीं माना  जाएगा की किसी पक्षकार का अधिवक्ता दूसरे न्यायालय मे व्ययस्थ हैं

(घ) जहा प्लीडर की बीमारी या दूसरे न्यायालय मे उसके व्ययस्थ होने से भिन्न कारण से , मुकदमे का संचालन करने मे उसकी असमर्थता को स्थगन के लिए एक आधार के रूप मे पेश किया जाता है वह न्यायालय तब तक स्थगन मंजूर नहीं करेगा जब तक उसका यह समाधान नहीं हो जाता हैं की ऐसे स्थगन के लिए आवेदन करने वाला पक्षकार समय पर दूसरा प्लीडर नयुक्त नहीं कर सकता  था :

(ड़ ) जहा कोई साक्षी न्यायालय मे उपस्थित हैं किन्तु पक्षकार  या उसका प्लीडर उपस्थित नहीं हैं अथवा पक्षकार या प्लीडर न्यायालय मे उपस्थित होने पर भी किसी साक्षी  की परीक्षा करने के लिए तैयार नहीं हैं वहाँ न्यायालय, यदि वह ठीक समझे तो, साक्षी का कथन अभिलिखित कर सकेगा और यथा स्थति पक्षकार या उसके प्लीडर द्वारा जो उपस्थित न हो अथवा पूर्वोक्त रूप से तैयार न हो , साक्षी की मुख्य परीक्षा या प्रतिपरीक्षा करने को अभिमुक्त करते हुए ऐसे आदेश पारित कर सकेगा जो वह ठीक समझे ।

आदेश 17 नियम 2 -- यदि पक्षकार नियत दिन पर उपसंजात होने मे असफल रहते हैं तो प्रक्रिया-

   वाद की सुनवाई जिस दिन के लिए स्थगन हुई  हैं उस दिन पक्षकार या उनमे से कोई उपसंजात होने मे असफल रहते हैं तो न्यायालय आदेश 9 द्वारा उस निमित  निदिष्ठ ढंगों मे से एक से वाद का निपटारा करने के लिए अग्रसर हो सकेगा या ऐसा अन्य आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे ।

आदेश 9 के बारे मे विस्तृत जानकारी के लिए यह clik करे।

[स्पष्टीकरण]- जहा किसी पक्षकार का साक्ष्य या साक्ष्य का पर्याप्त भाग अभिलिखित किया जा चुका हैं और ऐसा पक्षकार किसी ऐसे दिन जिस दिन के लिए वाद की सुनवाई स्थगन की गई उपसंजात होने मे असफल रहता हैं वह न्यायालय स्वविवेकानुसार उस मामले मे इस प्रकार अग्रसर हो सकेगा मानो ऐसा पक्षकार उपस्थित हो ।

आदेश17 नियम 3 -  पक्षकारों मे से किसी पक्षकार के साक्ष्य, आदि पेश करने मे असफल रहने पर भी न्यायालय आगे की कार्यवाही कर सकेगा --

                जहां वाद का कोई ऐसा पक्षकार जिसे समय अनुदत किया गया हैं अपना साक्ष्य पेश करने मे या अपने साक्ष्यों को हाजिर कराने मे या वाद की आगे की प्रगति के लोए आवश्यक कोई ऐसा अन्य कार्य करने मे  जिसके लिए समय अनुज्ञात किया गया हैं , असफल रहता हैं वह न्यायलकी ऐसे व्यतिक्रम के होते हुए भी -

(क) यदि पक्षकार उपस्थित होतो वाद को तत्क्षण विनिश्चित करने के लिए अग्रसर हो सकेगा , अथवा

(ख) - यदि पक्षकार या उनमे  से कोई अनुपस्थित हो तो नियम 2के अधीन कार्यवाही कर सकेगा । ।

इस उपबंध में स्थगन के लिए पर्याप्त कारण होना चाहिए।पर्याप्त कारण होने से न्यायलय तीन अवसर तरह स्थगन प्रदान कर सकेगा।प्रयाप्त कारण के अभाव में स्थगन का आदेश नहीं दिया जा सकता है।
जहां न्यायलय किसी पर्याप्त कारण के आधार पर स्थगन का आदेश प्रदान करता है वहां न्यायलय ऐसे स्थगन के लिए युक्तियुक्त या भारी खर्चे का आदेश भी देगा।

इसी प्रकार नियम2के अनुसार वाद की स्थगित दिनांक को पक्षकार के उपसंजात नही होने पर न्यायलय ,--
१.आदेश 9 के अंतर्गत कार्यवाही कर सकते हैं।
२. अन्य स्थगन आदेश दिया जा सकता है।
३. अन्य ऐसा कोई आदेश दे सकता है जो वह उचित समझे।
४. वाद की कार्यवाही में ऐसे अग्रसर हो सकता है जैसे कि पक्षकारो के उपसंजात होने पर होता।

नियम 3के अनुसार जिस पक्षकार को समय प्रदान किया गया है --
१. अपना साक्ष्य पेश करने में; या
२. अपने साक्षियो को उपस्थित करने में; ,या
३. ऐसा कोई अन्य कार्य करने में जो कि वाद की अग्रिम प्रगति के लिए आवश्यक है, जिसके लिए समय अनुज्ञात किया गया है, असफल रहता है, वहां ऐसी चूक के रहते न्यायलय ,,-

(1) यदि पक्षकार उपस्थित हो तो वाद के विनिश्चय के लिए, ओर
(2) यदि पक्षकार या उन में से कोई अनुउपस्थित है तो नियम 2 के अंतर्गत अग्रसर हो सकता है।

इस प्रकार यह एक महत्वपूर्ण उपबंध वाद के विचारण के लिए उपबंधित किया गया है।पक्षकारो के पास पर्याप्त कारण होते हुए भीउन्हें न्याय से वंचित नहीं होना पड़े तथा उनको वाद में समुचित अवसर प्रदान करने हेतु स्थगन प्रदान करने का हैं।

इस उपबन्ध के विस्तृत जानकारी के लिए इस बाबत विभिन्न न्यायालय द्वारा दिये गए न्यायनिर्णय --

1. आदेश 17 नियम 1,--जहा स्थगन का पर्याप्त कारण नहीं हो वहाँ स्थगन का आदेश नाम दिया जा सकता है।
AIR 1971 Guj. 42

2. आदेश 17 नियम 1--बृहद पीठ हेतु निर्देश -निर्देश का उत्तर निम्न रूप में दिया गया,--(1) ,,सिविल न्यायलय को यह सूचना मिलने पर की पुनरीक्षण याचिका लंबित है, कार्यवाही नहीं रोकना चाहिए और (2) सिविल न्यायलय द्वारा सिविल प्रक्रिया सहिंता और सिविल नियम की अनुपालना बाध्यकारी है परन्तु इस दिशा में न्यायलय न्यायिक विवेक से कार्य करेगा।
1997 (2) ,DNJ (Raj.)696

3. आदेश17 नियम 1--उत्तर वाद हतु दस तारीख तय की गई और आठ स्थगन हेतु व्यय अदा करने हेतु अवसर दिये गए -जिला न्यायलय स्थगन के मामले में बहुत उदार रहें।ऐसे उदार रवैये से मामले के निपटने में विलंब और मामलों का ढेर लग जाता हैं --स्थगन करने की एक सीमा होती है --आदेश 17नियम 1 में यह प्रावधान है कि स्थगन की अनुज्ञा नहीं दी जावेगी, जब तक की पक्षकारो के बूते के बाहर की परिस्थिति न हो --इतने स्थगन दे कर न्यायलय ने तात्विक अनियमता की है।
1995 (1) DNJ (Raj.)168

4.आदेश17 नियम1--स्थगन हेतु पक्षकारो को पर्याप्त कारण बताने चाहिए -साक्ष्य प्रस्तुत करने हेतु  अंतिम अवसर दिया गया था।कोई साक्षी प्रस्तुत नहीं किया गया न किसी को समन किया गया।स्थगन हेतु कोई कारण ही बताया गया --विचारण न्यायलय ने साक्ष्य बंद करने का आदेश देने में,अपने विवेक का उचित ही प्रयोग किया है।
1994 DNJ (Raj.)141

5. आदेश 17 नियम 2(क)--
वाद की सुनवाई आरम्भ होना-यह विचारण दिन प्रति दिन चालू रहना चाहिए जब तक कि सभी साक्षियो का कथन लिपिबद्ध न हो जावे।
1995(2) DNJ(Raj.)691 

6. आदेश 17 नियम 3 -उच्चतम न्यायालय द्वारा एन. जी. दास्ताने बनाम श्री कांत शिवड़े के मामले में निर्धारित किया गया है कि न्यायलय में उपस्थित साक्षियो की प्रतिपरीक्षा के लिए बार बार स्थगन लेना अधिवक्ता का अवचार (misconduct)है।बार कौंसिल को ऐसे मामले मे कठोर कार्यवाही करनी चाहिए।
AIR 2001 (SC.)2028


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 ORDER 18 --HEARING OF THE SUIT AND EXAMINATION OF WITNESS.
आदेश 18 --वाद की सुनवाई और साक्षियो क़ी परीक्षा।

      वाद की सुनवाई का प्रथम चरण साक्षियो की परीक्षा है।वाद का प्रस्तुत होना, लिखित कथन प्रस्तुत किया जाना, वाद पद निश्चित किया जाना, सभी वाद की प्राम्भिक कार्यवाही मात्र है।अतः वास्तविक रूप से वाद की सुनवाई अथवा कार्यवाही का आरम्भ साक्षियो की परीक्षा से होता है।

   न्यायलय में साक्षियो की परीक्षा किस प्रकार होगी इसके प्रावधान सहिंता के आदेश18 तथा धारा 138 में किये गए हैं।

सर्वप्रथम वादी अपने साक्षियो को प्रस्तुत करते हैं और उसके बाद प्रतिवादी अपने साक्षियो को प्रस्तुत करते हैं।
संहिता के संशोधन 2000 के अधिनियम जो 01जुलाई 2000 को लाग् हुआ है।संशोधन के पश्चात पक्षकारो का मुख्य परीक्षण शपथ पत्र से होता है।यानी मुख्य परीक्षा में पक्षकार अपना व गवाह का शपथ पत्र न्यायलय में प्रस्तुत करते हैं और विरोधी पक्षकार उनसे जिरह अथवा प्रतिपरीक्षा करता है।मुख्य परीक्षा को (Chief examination) व जिरह प्रतिपरीक्षा को (Cross examination)कहते हैं।वाद की सुनवाई में यह महत्वपूर्ण है।संहिता में आदेश 18 में इस बाबत उपबंध किये गए हैं जो इस प्रकार है --


आदेश 18 नियम 1सी पी सी -

आरम्भ करने का अधिकार--आरम्भ करने का अधिकार वादी को तब के सिवाय है जबकि वादी द्वारा अधिकथित तथ्यों को प्रतिवादी स्वीकार कर लेता है और यह तर्क करता है कि वादी जिस अनुतोष को चाहता है उसके किसी भाग को प्राप्त करने का वह हकदार या तो विधि के प्रश्न के कारण या प्रतिवादी द्वारा अधिकथित कुछ अतिरिक्त तथ्यों के कारण नहीं है और उस दशा में आरंभ करने का अधिकार प्रतिवादी को होता है।


 नियम 2 - कथन और साक्ष्य का पेश किया जाना -

(1) उस दिन जो वाद की सुनवाई के लिए नियत किया गया हो, या किसी अन्य दिन जिस दिन के लिए सुनवाई स्थिगित की गई हो,वह पक्षकार जिसे आरम्भ करने का अधिकार है, अपने मामले का कथन करेगा और उन विवाद्यको के समर्थन में अपना साक्ष्य पेश करेगा जिन्हें साबित करने के लिए आबद्ध  है।

(2) तब दूसरा पक्षकार अपने मामले का कथन करेगा और अपना साक्ष्य (यदि कोई हो) पेश करेगा और तब पूरे मामले के बारे में साधारणतः न्यायलय को सम्बोधित कर सकेगा।

(3)तब आरम्भ करने वाला पक्षकार साधारणतया पूरे मामले के बारे में उत्तर दे सकेगा।

(3क) कोई भी पक्ष वाद में मौखिक रूप से संबोधित कर सकता है और उसके मौखिक तर्क की समाप्ति के पूर्व, यदि कोई हो न्यायलय उसे संक्षेप में सुभिन्न शीर्षकों में लिखित तर्को में अपने वाद के पक्ष में ऐसे लिखित तर्को को न्यायलय अभिलेख का एक अंग बना लेगा।

(3ख) ऐसे लिखित तर्क की प्रतिलिपी विरोधी पक्षकारो को साथ साथ ही प्रदान कर दी जायेगी।

(3ग) ललिखित तर्क को फाइल करने के उद्देश्य से स्थगन की अनुमति नहीं दी जायेगी जब तक की न्यायलय लिखित में अभिलिखित के कारण से स्थगन की स्वीकृति आवश्यक न समझे।

(3घ) न्यायलय वाद के किसी भी पक्षकार से,जैसा वह उचित समझे,मौखिक तर्क के लिए समय सीमा निर्धारित करेगी।




 नियम 3--जहां कई विवाद्यक है वहाँ साक्ष्य -- 

                 जहां कई विवाद्यक है जिनमे से कुछ को साबित करने का भार दूसरे पक्षकार पर है वहां आरम्भ करने वाला पक्षकार अपने विकल्प पर या तो उन विवाद्यको के बारे में अपना साक्ष्य पेश कर सकेगा या दूसरे पक्षकार द्वारा पेश किए गए साक्ष्य के उत्तर के रूप में पेश करने के लिए उसे आरक्षित रख सकेगा और पश्चात कथित दशा में, आरम्भ करने वाला पक्षकार दूसरे पक्षकार द्वारा उसका समस्त साक्ष्य पेश किए जाने के बाद उन विवाद्यको पर अपना साक्ष्य पेश कर सकेगा और तब दूसरा पक्षकार आरम्भ करने वाले पक्षकार के द्वारा इस प्रकार पेश किए गए साक्ष्य का विशेषतया उत्तर दे सकेगा, किन्तु तब आरम्भ करने वाले पक्षकार पूरे मामले के बारे में साधारणतया उत्तर देने का हकदार होगा।
नियम (3क) --पक्षकार का अन्य साक्षियो से पहले उपसंजात होना --जहां कोई पक्षकार स्वंय कोई साक्ष्य के रूप में उपसंजात होना चाहता है वहा वह उसकी और से किसी अन्य साक्षी की परीक्षा किया जाने के पहले उपसंजात होगा, किन्तु यदि न्यायलय ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किये जायेंगे, उसे पश्चात्वर्ती प्रक्रम में स्वयं अपने साक्षी के रूप में उपसंजात होने के लिए अनुज्ञात करे तो वह बाद में उपसंजात हो सकेगा।


नियम 4 - साक्ष्य को अभिलिखित करना - 

(1)प्रत्येक वाद में एक साक्षी का मुख्य परीक्षण शपथपत्र एवम उसकी प्रतिलिपि उस पक्षकार द्वारा साक्ष्य के लिए विरोधी पक्षकार को देगा।

   परन्तु जहां दस्तावेज फ़ाइल किये गए और पक्षकार उन दस्तावेजों पर सबूत एवम ऐसे दस्तावेजों की ग्राह्यता पर निर्भर करता है, जो कि न्यायलय के आदेश एवम शपथपत्र के साथ फ़ाइल किये गये है।

  (2) उपस्थित साक्षी के साक्ष्य (प्रतिपरीक्षा व पुनर्परीक्षा) जिसका साक्ष्य (मुख्य परीक्षा)न्यायलय को शपथपत्र द्वारा पेश किया गया, न्यायलय द्वारा या उस द्वारा नियुक्त आयुक्त द्वारा ग्रहण किया जाय।
परन्तु न्यायलय इस उपनियम के अधीन आयुक्त की नियुक्ति के समय उन युक्तिसंगत कारणों का ध्यान रखें जो उचित हो।

(3)न्यायलय या आयुक्त, जैसी भी स्थति हो साक्ष्य को लिखित रूप में अथवा पत्र द्वारा न्यायाधीश या आयुक्त के समक्ष यथास्थति अभिलिखित किया जाय और जहां साक्ष्य आयुक्त के द्वारा अभिलिखित किया गया है वह जिस न्यायलय द्वारा नियुक्त हुआ है, को लिखित में अपनी रिपोर्ट के साथ उस साक्ष्य को हस्ताक्षर सहित लौटाएगा और इसके अंतर्गत लिया गया साक्ष्य वाद की रिपोर्ट का एक अंग होगा।

(4) आयुक्त उन टिप्पणी को जिन्हें वह परीक्षण के समय किसी भी साक्षी के व्यवहार के बारे में अभिलिखित कर सकते है।

परन्तु यदि आयुक्त के सम्मुख साक्ष्य के अभिलेख के समय कोई आपत्ति जताई जाती है तो वह अभिलिखित की जायेगी और तर्क के समय निर्णीत की जायेगी।

(5) आयुक्त की रिपोर्टआयोग नियुक्त करने वाले न्यायलय को आयोग की तिथि के 60दिन के अन्दर प्रस्तुत की जावेगी; यदि न्यायलय किन्ही कारणों से लिखित में समय नही बढ़ाता।

(6) उच्च न्यायालय अथवा जिला न्यायालय यथास्थति इस नियम के अधीन साक्ष्य को अभिलिखित करने के लिए आयुक्तों की सूची तैयार करेगा।

(7) सामान्य या विशेष आदेश द्वारा न्यायलय आयुक्त की सेवाएं के लिए पारिश्रमिक के रूप में भुगतान के लिए राशी निश्चित कर सकते हैं।

(8) आदेश 26के नियम16,16क,17और18के परन्तुक जिस रूप में लागू है इस नियम के अंतर्गत उस आयोग के विवाद्यक, निष्पादन एवम प्रतिवर्ती में लागू होंगे।

    आदेश 26 के उपबन्ध के लिये यहाँ click करे।


नियम 5--जिन मामलों की अपील हो सकती है उनमें साक्ष्य कैसे लिखा जाएगा--जिन मामलों में अपील अनुज्ञात की जाती है उन मामलों में हर एक  साक्षी का साक्ष्य --(क) न्यायलय की भाषा में,-
(१) न्यायाधीश द्वारा या उसकी उपस्थिति में और उसके व्येक्तिक निदेशन और अधीक्षण में लिखा जायेगा:या
(२) न्यायाधीश के बोलने के साथ ही टाइप राइटर पर टाइप किया जाएगा; या
(ख) यदि न्यायाधीश अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से ऐसा निदेश दे तो न्यायाधीश की उपस्थिति में न्यायलय की भाषा में यंत्र द्वारा अभिलिखित किया जाएगा।
इस आदेश में 19 नियम उपबंधित किये गए है।अन्य महत्वपूर्ण उपबन्ध का आगे विवेचन किया जायेगा।
इस आदेश के नियम 1से 5तक बाबत भिन्न भिन्न न्यायलय द्वारा जो न्यायनिर्णय किये गए हैं वो आपकी सुविधा के लिए दिये जा रहे हैं --

1. उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया है कि जहां किसी पक्षकार को साक्ष्य प्रस्तुत करने के अनेक अवसर प्रदान किया गया हो, फिर भी वह साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाया हो ,वहां ऐसे पक्षकार को खर्चे पर साक्ष्य पेश करने का और अवसर प्रदान किया जा सकता है।
AIR 2001 SC 1440

2. आदेश 18 नियम 2व 3क-वादी महिला अपनी साक्ष्य में नहीं उपस्थित हुई और उसके और से उसका मुख्तयार साक्षी में आया - वादिनी ने ऐसा सदभावी रहते किया परन्तु उसे विधिक जानकारी का ज्ञान होने पर स्वंय की साक्षी देनी चाही।अभिनिर्धारित--नियम3क निर्देशात्मक है और न्यायलय बाद में भी पक्षकार का साक्ष्य लेने में सक्षम है भले ही नियम अनुसार पूर्व में ऐसी अनुमति नहीं ली गई हो।
1999(1) DNJ (Raj.) 390

3.नियम1-वादी की और से उसका मुख्तयार को साक्ष्य के लिये योग्य साक्षी माना गया तथा राजस्थान उच्च न्यायालय के निर्णय AIR1998Raj.185 से असहमति की गई।
AIR 2001 Kant.231

4.नियम2--प्रतिवादी की साक्ष्य का अभिखण्डन करने की साक्ष्य का अवसर उन
 विवाद्यक बिंदु बाबत नही दिया जा सकता जिनके सबूत का भार पूर्व से वादी पर था।
AIR 2003 P&H 73

5. कोई न्यायलय विधिसमत कारण दिये बिना मात्र साक्ष्य सूची पेश नही करने के आधार पर बन्द नहीं कर सकेगा।
AIR 1981Dehli.224

6 .नियम5--न्यायाधीश की उपस्थिति केवल भौतिक उपस्तिथि से ही नहीं है।साक्ष्य अभिलिखित किया जाने के समय पीठासीन अधिकारी को सावधान व सचेत होना भी आवश्यक है।अन्य कार्य मे व्यस्त रहना उचित नहीं है।
AIR 1982 Raj. 317


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 ORDER 23 CPC -WITHDRAWAL AND ADJUSTMENT OF SUITS.
आदेश 23 सी पी सी --वादों का प्रत्याहरण और समायोजन

    न्यायालय में वाद प्रस्तुत करने का मुख्य उद्देश्य अधिकारों का प्रवर्तन एवम अनुतोष प्राप्त करना होना होता है और वह तब तक चलता रहता है, जब तक वादी को अनुतोष प्राप्त नहीं होता है।लेकिन वाद का न्यायनिर्णय तक चलता ही रहे यह आवश्यक नहीं है।पक्षकारो को वाद के किसी प्रक्रम पर समझौता,समायोजन आदि करने का अधिकार प्राप्त होता है।और ऐसा करने के लिए वे स्वतन्त्र होते हैं।ऐसी स्थिति में वाद का चलते रहने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।एवम वाद का प्रत्याहरण (Withdrawal) कर दिया जाता है।इस बाबत प्रावधान सहिंता के आदेश23 में किये गए हैं।यह संहिता का महत्वपूर्ण प्रावधान है।तथा वाद प्रस्तुत होने के बाद यदि वाद समझौते या अन्य प्रकार से वादी अपने अनुतोष बाबत संतुष्ट हैं तब अपना वाद विड्रॉल कर लेगा।संहिता में निम्न प्रकार से उपबन्ध किये गए है--


आदेश23नियम 1--वाद का प्रत्याहरण या वाद के भाग का परित्याग--(1)वाद प्रस्तुत करने के बाद किसी भी समय वादी सभी प्रतिवादियों या उनमें से किसी के विरुद्ध अपने वाद का परित्याग या अपने दावे के भाग का परित्याग कर सकेगा;

        परन्तु जहां वादी अवयस्क है या ऐसा व्यक्ति है, जिसे आदेश 32 के नियम1से नियम 14 तक के उपबंध लाग् होते हैं वहां न्यायलय की इजाजत के बिना न तो वाद का और न वाद के किसी भाग का परित्याग किया जायेगा।

 (2) उपनियम (1) के परन्तुक के अधीन इजाजत के लिए आवेदन के साथ वाद मित्र का शपथपत्र देना होगा और यदि अवयस्क या ऐसे अन्य व्यक्ति का प्रतिनिधित्व प्लीडर द्वारा किया जाता है तो, प्लीडर को इस आशय का प्रमाणपत्र भी देना होगा कि प्रस्थापित परित्याग उसकी राय में अवयस्क या ऐसे अन्य व्यक्ति के फायदे के लिए है।
(3) जहां न्यायलय को यह समाधान हो जाता है कि ---
(क) वाद किसी औपचारिक त्रुटि के कारण विफल हो जायेगा, अथवा
(ख) वाद की विषयवस्तु या वाद के भाग के लिए वाद प्रस्तुत करने के लिए वादी को अनुज्ञात करने के पर्याप्त आधार है,
    वहां वह ऐसे निबन्धनों पर जिन्हें वह ठीक समझे, वादी को ऐसे वाद की विषयवस्तु या दावे के ऐसे भाग के संबंध में नया वाद प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता रखते हुए ऐसे वाद से  या दावे के ऐसे भाग से अपने को प्रत्याहत करने की अनुज्ञा दे सकेगा।
(4) जहां वादी --
(क)) उपनियम (1) के अधीन किसी वाद का या दावे के भाग का परित्याग करता है, अथवा
(ख) उपनियम(3) में निर्दिष्ट अनुज्ञा के बिना वाद से या दावे के किसी भाग से प्रत्याहत कर लेता है,
    वहावह ऐसे खर्चे के लिए दायीं होगा जो न्यायलय अधिनिर्णीत करे और वह ऐसी विषयवस्तु या दावे के ऐसे भाग के बारे में कोई नया वाद प्रस्तुत करने से प्रवारित होगा।

(5) इस नियम के किसी बात के बारे में यह नहीं समझा जाएगा कि वह न्यायलय को अनेक वादियो में से एक वादी को उपनियम (1) के अधीन वाद या दावे के किसी भाग का परित्याग करने या किसी वाद या दावे का अन्य वादियो की सहमति के बिना उपनियम (3) के अधीन प्रत्याहरण करने की अनुज्ञा देने के लिए प्राधिकृत करती है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि वाद का विड्रॉल आदेश 23  नियम 1 के अनुसार ही किया जा सकता है।आदेश 23 नियम 1 को सरल भाषा में इस तरह से समझा जा सकता है--

वादी सभी या किन्ही प्रतिवादी     के विरुद्ध वाद या दावे के किसी भाग को किसी समय वापिस ले सकते हैं।
यदि वादी अवयस्क है या जिन पर आदेश 32 के नियम 1 से 14लागू होते हैं तो न्यायलय की अनुमति के बिना वाद वापिस नहीं लिया जा सकता है। न ही दावे के किसी भाग का परित्याग ही किया जा सकता है।
न्यायलय की अनुमति हेतु प्रस्तुत आवेदन के साथ इस आशय का शपथ पत्र देना होगा कि ऐसा किया जाना अवयस्क के हित में है व उसके लिए लाभदायक है।जो निम्न द्वारा प्रस्तुत किया जाएगा --

 (क) वाद मित्र द्वारा;

(ख) यदि वादी ( अवयस्क)का प्रतिनिधित्व किसी अधिवक्ता के द्वारा किया जा रहा है तो ऐसे अधिवक्ता का शपथ पत्र दिया जा सकता है।

नियम 3 के अनुसार न्यायलय वादी को नया वाद प्रस्तुत करने का अधिकार सुरक्षित रखते हुए भी वाद विड्रॉल करने या दावे के किसी भाग को प्रत्याहत करने की अनुमति दे सकता है।
बिना न्यायलय की अनुमति के या अधिकार सुरक्षित रखे बिना वाद विड्रॉल किया जाता है या दावे के भाग का परित्याग किया जाता है तो नया वाद नहीं ला सकेगा।

सहिंता के नियम 1 क.- प्रतिवादियों का वादियो के रूप में पक्षान्तरण करने की अनुज्ञा कब दी जाएगी---जहा नियम 1के अधीन वादी द्वारा वाद का प्रत्याहरण या परित्याग किया जाता है और प्रतिवादी आदेश 1 नियम10 के अधीन वादी के रूप में पक्षान्तरित किये जाने के लिए आवेदन करता है वहां न्यायलय, ऐसे आवेदन पर विचार करते समय इस प्रशन पर सभ्यक ध्यान देगा कि क्या आवेदक का कोई ऐसा सारवान प्रश्न है जो अन्य प्रतिवादी मे से किसी के विरुद्ध विनिश्चय किया जाना है।

आदेश 1 नियम10 के विस्तृत जानकारी के लिए यहां Click करें।


आदेश23 नियम 2.--परिसीमा विधि पर पहले वाद का प्रभाव नहीं पड़ेगा --अंतिम पुरवर्ती नियम के अधीन दी गई अनुज्ञा पर संस्थित किसी भी नये वाद में वादी परिसीमा विधि उसी रीति से आबद्ध होगा मानो प्रथम वाद संस्थित नहीं किया गया हो।

आदेश 23 नियम3.-वाद में समझौता - जहां न्यायलय को समाधानप्रद रूप से यह साबित कर दिया जाता है कि वाद ( पक्षकारो द्वारा लिखित और हस्ताक्षरित किसी विधि पूर्ण करार या समझौते के द्वारा) पूर्णतः या भागतः समायोजित किया जा चुका है या जहां प्रतिवादी वाद की पूरी विषय वस्तु के या उसके किसी भाग के संबंध में वादी की तुष्टि कर देता है वहा न्यायलय ऐसे करार ,समझौते या तुष्टि के अभिलिखित किये जाने का आदेश करेगा और (जहा तक कि वह वाद के पक्षकारो से सम्बंधित, चाहे करार ,समझौते या तुष्टि की विषयवस्तु वहीं हो या न हो जो किवाद की विषयवस्तु है वहां तब तदनुसार डिक्री पारित करेगा;)

(परन्तु जहाँ एक पक्षकार द्वारा यह अभिकथन किया जाता है और दूसरे पक्षकार द्वारा यह इंकार किया जाता है कि कोई समायोजन या तुष्टि तय हुई थी वहां न्यायलय इस प्रशन का विनिश्चय करेगा किन्तु इस प्रशन के विनिश्चय के परियोजन के लिए किसी स्थगन की मंजूरी तब तक नहीं दी जायेगी तब तक कि न्यायलय, ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किये जायेंगे, ऐसा स्थगन करना ठीक नहीं समझे।)

स्पष्टीकरण--कोई ऐसा करार या समझौता जो भारतीय सविंदा अधिनियम 1872के अधीन शून्य या शुन्यकर्णीय है, इस नियम के अर्थ में विधि पूर्ण नहीं समझा जाएगा।)

नियम 3 (क) वाद का वर्जन--कोई डिक्री अपास्त करने के लिये कोई वाद इस आधार पर नहीं लिया जायेगा कि वह समझौता जिस पर डिक्री आधारित है, विधि पूर्ण नहीं था।

नियम (3ख) --प्रतिनिधि वाद मे करार या समझौता न्यायलय की अनुमति के बिना प्रविष्ट न किया जाना।
नियम 4-- डिक्रीयो के निष्पादन की कार्यवाही पर प्रभाव न पड़ना।

उपर्युक्त नियम 3 व 4 से स्पष्ट है कि वाद में के पक्षकार कभी समझौता कर सकते हैं लेकिन इसके लिए कतिपय शर्तो का पूर्ण किया जाना आवश्यक है जो निम्न है--

1.समझौता लिखित व हस्ताक्षर युक्त हो ।
2. न्यायलय का समाधान किया जाना आवश्यक है।
3. वादी की संतुष्टि एवम समयोजन के लिए किया जाना आवश्यक है।
4. प्रतिनिधि वादों में न्यायलय की अनुमति से ही समझौता किया जा सकता है।
5.न्यायलय द्वारा अभिलिखित किया जाना आवश्यक है।
समझौता सविंदा अधिनियम के प्रावधान के अनुसार विधि पूर्ण होना चाहिए।

प्रतिनिधि वाद वो है निम्न हैं -
 (क)आदेश  1 नियम 8 के अंतर्गत वाद ।
 (ख)धारा 91 या 92 सी.पी.सी. के अधीन वाद।
 (ग) हिन्दू अविभक्त कुटुम्ब के कर्ता द्वारा अन्य सदस्यों का प्रतिनिधित्व करते हुए चलाया गया वाद।
 (घ)ऐसा वाद जिससे पारित डिक्री वाद में पक्षकार के रूप में नामित नहीं है परंतु  उसे आबद्ध करती है।

                 इस प्रकार यह एक सहिता में महत्वपूर्ण उपलब्ध हैं तथा इसकी विस्तृत जानकारी आवश्यक है।इस बाबत महत्वपूर्ण न्यायनिर्णय--



  1.आदेश 23 नियम 1 - आदेश 23 का परंतुक   आदेश 23 नियम 1 (3) के उपबंध रीट याचिका जो उच्च नयायालय और उच्चतम न्यायलय में प्रस्तुत की जाती हैं उन पर भी लागु होते हैं - यदि जब न्यायलय के बिना अनुमति के वाद विड्रोल किया जाता हैं तब पश्चातवर्ती याचिका मैन्टेनेबल नहीं होगी |
AIR 1992 SC. 509

2. आदेश 23 नियम 1 विड्रोल का प्राथना-पत्र  - अपीलीय न्यायालय उक्त आदेश के अंतर्गत विड्रोल की अनुमति प्रदान कर सकता हैं
 AIR 1991 HP 13

3. आदेश 23 नियम 3 - यह उपधरना सदैव रहती हैं की समझोते पर आधारित डिग्री वैध हैं जब तक इसके विपरीत सिद्ध न कर दिया जावे - अभिनिर्धारित जब डिग्री को चुनोती दी जावे और उसकी सत्यता संदिग्ध हो तो न्यायालय को मामले की जांच करनी चाहिए न की दुगरी को अपास्त कर मामले को रिमांड कर देवे |
 1996 (1) DNJ (RAJ) 356

  4. आदेश 23 नियम 3 - सहमती डिग्री के विरुद्ध अपील - जहां पक्षकारो के बयान लेख बद्ध व हस्ताक्षरित हो, वहां धारा 3 की अवेहलना नहीं मानी जा सकती हैं 
  AIR 1987 P & H  60.

  5. आदेश 23 नियम 1() - प्रत्यर्थी ने इस आधार पर आवेदन किया की मूल वाद या जुलाई 2006 के महीने में विदेश गयी तथा पता नहीं की वह कब लौट के आएगी - वाद में आवेदक प्रतिवादी में से एक हैं - विचरण न्यायालय ने आवेदन स्वीकार कर निर्देश दिया की आवेदक को वादियों के रूप जोड़ा जावे - विचरण न्यायालय ने इस पर विचार तथा विनिश्चय नहीं किया की वादिया ने वाद का परित्याग कर दिया हैं - निर्णित, विचरण न्यायलय द्वारा आदेश 23 नियम 1(क) के अंतर्गत दायर आवेदन को स्वीकार करना नियोजित नहीं था, आदेश आपस्त किया |
   2008(1) DNJ (RAJ) 277. 




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Order 26 Rule 9 CPC --Commissions to make local investigation.
 आदेश 26 नियम 9 सी.पी. सी.--स्थानीय अन्वेषण करने के लिए कमीशन।

सिविल वादों में वादग्रस्त सम्पति के वाद के सम्बन्ध में स्थानीय अनुसन्धान की आवश्यकता पड़ती है। धारा 75 एवम आदेश 26 नियम 9 के अंतर्गत न्यायलय को स्थानीय अनुसन्धान के लिए कमीशन जारी करने की शक्तियां प्रदान की गई है।संहिता में आदेश 9निम्न प्रकार है--

आदेश 26 नियम 9 सी.पी. सी.--स्थानीय अन्वेषण करने के लिए कमीशन --किसी भी वाद में जिसमे न्यायलय विवाद में के किसी विषय के स्पष्टीकरण के या किसी सम्पति के बाजार मूल्य के या किन्ही अन्तः कालीन लाभों या नुकशानी या वार्षिक शुद्ध लाभों की रकम के अभिनिश्चित के प्रयोजन के लिए स्थानीय अन्वेषण करना, अपेक्षणीय या उचित समझता है, न्यायलय ऐसे व्यक्ति के नाम जिसे वह ठीक समझे,ऐसा अन्वेषण करने के लिए और उस पर न्यायलय को रिपोर्ट देने के लिए उसे निदेश देते हुए कमीशन निकाल सकेगा;
परन्तु जहां राज्य सरकार ने उन व्यक्तियों के बारे में नियम बना दिये हैं जिनके नाम ऐसा कमीशन निकाला जा सकेगा वहां न्यायलय ऐसे नियमों से आबद्ध होगा।


  इस प्रकार उपरोक्तानुसार स्पष्ट है कि न्यायलय वाद में किसी भी प्रक्रम पर निरीक्षण के लिए कमीशन जारी कर सकते हैं।प्रतिवादी द्वारा वादी की भुमि पर किये जा रहे अतिक्रमण को रोकने के लिए वादी द्वारा स्थाई निषेधाज्ञा के लिए संस्थित वाद में यह आवेदन करने पर की वादी की भूमि का नाप और सीमांकन करने के लिए कमिश्नर नियुक्त किया जावे।ऐसा आवेदन स्वीकार किया जाकर भूमि के नाप और सीमांकन के लिए कमिश्नर की नियुक्ति की जा सकती है।

स्थानीय अनुसंधान के लिए कमीशन जारी करना न्यायलय की विवेकाधीन शक्ति है।
यह नियम वादों की कार्यवाही में लागू होता है।वादपत्र के साथ प्रस्तुत आदेश 39 के आवेदन में आदेश39 नियम 7 के अंतर्गत आवेदन पत्र दिया जाना चाहिए।

आदेश39 के लिए यहाँ Click कर देखें। 

ORDER 26, SEC. 75-78 CPC (आदेश 26, धारा75 -78 सी. पी.सी.)

 न्यायलय द्वारा कमिश्नर नियुक्त करने पर कमिश्नर द्वारा आवश्यक अनुसन्धान के बाद एक प्रतिवेदन तैयार करेगा और उस प्रतिवेदनको ऐसे साक्ष्य के साथ, जो उसके द्वारा ली जाये, कमीशन जारी करने वाले न्यायलय को प्रस्तुत करेगा।ऐसे प्रतिवेदन पर कमिश्नर के हस्ताक्षर किए जायगे।यदि प्रतिवेदन से कमिश्नर की कार्यवाही से न्यायलय असन्तुष्ट हो तो वह ऐसी अग्रिम जांच का निदेश दे सकेगा जो वह उचित समझे।
   
    (आदेश26 नियम 10)

एक कमिश्नर की रिपोर्ट में कोई कमी रह जाने पर उसे निरस्त किये बिना दूसरा कमीशन जारी किया जा सकता है।लेकिन प्रथम बार नियुक्त कमिश्नर की रिपोर्ट पर्याप्त होने पर दुबारा कमिश्नर नियुक्त किया जाना आवश्यक नहीं है।
कमिश्नर की रिपोर्ट पर न्यायलय द्वारा गुणा गुण के आधार पर विचार कर सकता है।ऐसे मामलों में कमिश्नर का परीक्षण किया जाना आवश्यक नहीं है।पक्षकार चाहे तो परीक्षण न्यायलय में करवा सकते हैं।
सहिंता का यह महत्वपूर्ण उपबंध है तथा सिविल वादों की कार्यवाही में हमेशा इसकी आवश्यकता होती है।एक सफल अधिवक्ता को इस उपबंध की विस्तृत जानकारी होना जरूरी है।
इस उपबंध के संबंध मे महत्वपूर्ण न्यायनिर्णय --
1. कमिश्नर की नियुक्ति का आवेदन खारिज किया--तथ्यात्मक स्थिति के सम्बंध में विवाद नहीं --मौके के भौतिक सत्यापन हेतु कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने की आवश्यकता नहीं --निर्णीत, आलोच्य आदेश में अवैधता नहीं है।
2013 (4) DNJ 1486


2.  कमिश्नर की नियुक्ति --आवेदन खारिज किया --निगरानी खारिज --कब्जे के संबंध में रिपोर्ट प्राप्त करने हेतु आवेदन पेश किया --साक्ष्य पेश कर वादी को कब्जा साबित करना आवश्यक है --,निर्णीत, आदेश में अवैधता नही हैं।

3.कमिश्नर रिपोर्ट के जरिए साक्ष्य सृजन करने के लिए पक्षकारो को अनुमति नहीं दी जा सकती।प्राथी को साबित करना आवश्यक है कि निष्कृष कैसे प्रतिकूल है।याचिका खारिज की।
2015 (1) DNJ 198

4.  वादी गली साबित करने में असफल रहा।कमिश्नर ने टिप्पणी की कि गली सरकारी गली थी --साक्ष्य पैदा करने के लिए कमिश्नर की रिपोर्ट का उपयोग नही किया जा सकता है।
2014 (4) DNJ 1632

5. कमीशन जारी करना न्यायलय के विवेकाधीन है।जहाँ साक्ष्य प्रस्तुत होने मात्र से  विवादास्पद बिंदु तय नही हो सकता हो।
1997 (2) DNJ 541

6.सम्पति के बाजार मूल्य के निधार्रण हेतु अधिवक्ता को कमिश्नर नियुक्त नहीं होता जा सकता हैं।
AIR 2002 NOC185 Mad



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Commission-कमीशन

Order 26,Sec. 75-78 CPC  (आदेश 26, धारा75 -78 सी. पी.सी.)


विधि का यह सर्व मान्य सिद्धान्त है कि किसी वाद की सम्पूर्ण कार्यवाही वाद के पक्षकारो के समक्ष संचालित की जाय, साक्षियों की साक्ष्य उनकी उपस्थिति में न्यायालय में लिया जावे।परन्तु कभी कभी ऐसी परिस्थिति होती है कि वाद के पक्षकार या साक्षी न्यायालय की पहुँच के बाहर होते है या उपस्थित होने में असमर्थ होते है, जैसे--बीमारी या दुर्बलता के कारण, न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर होने या अन्य किसी कारण से न्यायालय में उपस्थित होने में असमर्थ होने आदि।ऐसे व्यक्तियो के लिए साक्ष्य के लिये आदेश26व धारा75 से 78में कमीशन जारी करने के प्रावधान किये गए है।

 धारा 75.कमीशन निकालने की न्यायालय की शक्ति--ऐसी शर्तो और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो विहित की जाए,न्यायालय--
(क) किसी व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए;
(ख)स्थानीय अनुसंधान के लिए;
(ग)लेखों की परीक्षा या उनके समायोजन करने के लिए; अथवा
(घ)विभाजन करने के लिए;
(ड़)वैज्ञानिक तकनीकी या विशेषज्ञ अन्वेषण करने के लिए;
(च)ऐसी सम्पति का विक्रय करने के लिए जो शीघ्र और प्रकृत्या शयशील है और जो वाद का अवधारण लंबित रहने तक न्यायालय की अभिरक्षा में है;
(छ)कोई कार्यालयीन अथवा लिपकीय कार्य के अनुपालन के लिए;
कमीशन निकाल सकेगा।
धारा 76. अन्य न्यायालय को कमीशन-(1)किसी व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए कमीशन उस राज्य से जिसमें उसे निकालने वाला न्यायालय स्थित है, भिन्न राज्य में स्थित किसी ऐसे न्यायालय को निकाला जा सकेगा(जो उच्च न्यायालय नहीं है और)जो उस स्थान में अधिकारिता रखता है जिसमें वह व्यक्ति निवास करते हैं जिसकी परीक्षा की जानी है।
(2)उपधारा(1)के अधीन किसी व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए कमीशन को प्राप्त करने वाले हर न्यायलय उसके अनुसरण में उस व्यक्ति की परीक्षा करेगा या कराएगा और जब कमीशन सम्यक रूप से निष्पादित किया गया है तब वह उसके अधीन लिए गए साक्ष्य सहित उस न्यायालय को लोटा दिया जावेगा जिसने उसे निकाला था, किन्तु यदि कमीशन निकालने के आदेश द्वारा अन्यथा निर्दिष्ट किया गया है तो कमीशन ऐसे आदेश के निबन्धनों के अनुसार लौटाया जाएगा।
धारा 77.अनुरोध- पत्र--कमीशननिकालने के बदले न्यायालय ऐसे व्यक्ति की परीक्षा करने के लिएअनुरोध- पत्र निकाल सकेगा जो ऐसे स्थान में निवास करता है जो भारत के भीतर नहीं है।

(78)विदेशी न्यायालयो द्वारा निकाले गए कमीशन--के बारे मे उपबंध है।
 आदेश26 कमीशन के बाबत उपबंधित किया गया है...
आदेश 26 नियम 1.वे मामले जिनमे न्यायालय साक्षी की परीक्षा के लिए कमीशन निकाल सकेगा-
कोई भी न्यायालय किसी भी वाद में अपनी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर निवास करने वाले किसी ऐसे व्यक्ति की परिप्रश्नो द्वारा या अन्यथा परीक्षा करने के लिए
कमीशन निकाल सकेगा जिसे न्यायलय में हाजिर होने से इस संहिता के अधीन छूट मिली हो या जो बीमार अँगशेथिल्य के कारण उसमे हाजिर होने में असमर्थ हो;
(परन्तु परिप्रश्नो द्वारा परीक्षा के लिए कमीशनतब तक नहीं निकाला जाएगा जब तक कि न्यायलय ऐसे कारणों से जो लेख बद्ध किये जायेगे,ऐसा करना आवश्यक न समझे।
 आदेश26 में नियम1से 22तक उपबंधित किये गए हैं।इनमे से महत्वपूर्ण उपबंधों का आगे      विवेचन किया जायेगा।आप मेरे ब्लॉग व ऐप्प को फोल्लो करते रहे।
आदेश26 नियम1से संबंधित न्यायनिर्णय यहां दिये जा रहे हैं--

1.application for examination on commission filed in suit for title alleging and old age wich was supported by medical evidence-however the genuineness of medical certificate not examined nor the medical officer issuing the certificate examined-- therefore without such satisfaction,no order could be passed on the application for examination on commission without recording such satisfaction.
AIR 1993 Cal.285


2. Refusal by the court to set aside the report of the commissioner who was appointed for local inspection--it was found on facts that intrest of parties were not prejudice and not irreparable injuries caused--therefore revision petition against such order will not be maintainable.
AIR 2000 Ker.27.

3.Issue of commissioner for local inspection by the District Consumer forum is not without jurisdiction.
AIR 1999 Mad.24

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